Book Title: Jain Siddhant Kaumudi
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्री जिनेश स्तुतिः
अखिलेश! गुणीश! जिनेश विभो,
परमेश परात्पर शुद्धमते। विनतं पतितं बहुकर्मगतं, जनतारण! तारय भक्तममुम् ॥
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बलहीनमहो, मतिहीनमहो, गुणहीनमहो, गतिहीनमहो। तमसावृत- बोधनिधानमहो, जनतारण! तारय भक्तममुम्॥
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मम जीवनमीन-निभं सततं, विकलंसकलंभवसागरके। करुणाकर! तारय तारय मां, जनतारण! तारय भक्तममुम् ॥
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8888888 श्रीजैनसिद्धान्तकौमुदी : १२१

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