Book Title: Jain Siddhant Kaumudi
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 155
________________ BAS688638688638688888888888888888888 8888888888888888888888888888888888888888888 • चैत्र शुक्ल त्रयोदश्यां, शुभे च रविवासरे। | महावीरजयन्त्यां वै, 'कौमुदीयं प्रपूरिता॥ (७११) | यावन्मेरुस्वयम्भूश्रीसूर्यचन्द्रग्रहाः स्थिताः। राजतां तावदियं लोके जैनसिद्धान्त कौमुदी॥ (७१२) आहर्ती भारती भव्यां, प्रार्थये श्रुतदेवताम्। भूयाज जैनसिद्धान्त - कौमुदी विश्वभूतये॥ ज BRSS8888888888888888888888888888RSE श्रीजैनसिद्धान्तकौमुदी : १२०

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