Book Title: Jain Siddhant Kaumudi
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 164
________________ 8888888888888888888888 8888888888888888 (२४) संरुध्य ममतार्वतं समता सूत्र- मास्थितः। मृत्यो महोत्सवे, हर्षन् सत्यं मृत्युञ्जयी सदा॥ (२५) रागद्धेष,-वशीभूतो, .. जीवो दुःखततिं श्रितः। क्रूरकर्माश्रितो लोके, कंथं शान्तिं समाश्रयेत्॥ (२६) प्रतिकूलेऽनुकूले वा, सुन्दरेऽ सुन्दरे ऽपि च। राग-द्वेषौ न मे किञ्चित् जायतां हे जिनेश्वर॥ (२७) मनो में जायतां स्वच्छं पवित्र दोष वर्जितम्। सर्वेषामात्म तुष्टानां दर्शनं स्यात् प्रशान्तये॥ B88888888888888888888888888888888 श्रीजैनसिद्धान्तकौमुदी : १२६ 88888888888888888888888888888888888888888888

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