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साग, भात आदि अनेक का संग्रह होता है। अत: 'भोजन' संग्रह ॐ नय का शब्द है। इसी प्रकार सेना, वृक्ष, पशु आदि भी संग्रह नय के
शब्द हैं। ३. व्यवहार नय
वस्तु के सामान्य धर्म को गौण करके जो विशेष धर्म को ही प्रधानता प्रदान करता है, उसे व्यवहार नय कहते हैं। जैसे - व्यवहार नय द्रव्य के छह भेद मानता है तथा उत्तरोत्तर भेद प्रभेदों की प्ररूपणा करता है। ४. ऋजुसूत्र नय
जो वर्तमान कालिक स्वकीय अर्थ को ग्रहण करता है, उसे 'ऋजुसूत्र नय' कहते हैं। एक मनुष्य भूतकाल में राजा रहा हो किन्तु वर्तमान काल में वह भिखारी हो तो यह नय उसे राजा न कहकर भिखारी ही कहेगा क्योंकि वर्तमान काल में वह भिखारी की स्थिति में है। ५.शब्द नय
यह नय पर्यायवाची शब्दों को एकार्थवाची मानता है परन्तु काल, कारक लिङ्ग संख्या पुरुष आदि के कारण यदि उसमें भेद हो तो इस भेद के कारण एकार्थवाची शब्दों में भी यह अर्थ भेद मानता
है। जैसे- नर-नारी-पुत्र-पुत्री, पहाड़-पहाड़ी। स्पष्ट है कि नय 8 किसी एक अपेक्षा का अवलम्बन स्वीकार करता है। वह अपेक्षा of प्रत्येक व्यक्ति या प्रत्येक वचन के लिए पृथक्-पृथक् होती है। नयवाद
वस्तु में सन्निहित अनेक सत्यधर्मों का रहस्योद्घाटन करता है। B8888888888888888888888888888888
@ । चौबीस ।
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