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8888888888888888 रंग, गन्ध रस तथा स्पर्श के सन्दर्भ में जैनागम शास्त्रों में विशद विवेचन है। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३४ तो सम्पूर्ण रूप से लेश्या प्रकरण से ओत-प्रोत है। उत्तराध्ययन के अनुसार षड्लेश्याओं के वर्ण का निरूपण
जीमूत निद्धसंकासा गवल रिट्ठगसन्निभा। खंजंजजण-नयणनिभा किण्हलेसा उ वण्णओ। नीलासोग संकासा, चासपिंछसमप्पभा।वेरुलियनिद्धसंकासा नीललेसा उ वण्णओ॥ अयसीपुप्फसंकासा कोइलच्छदसन्निभा। पारेवय-गीवनिमा काउलेसा उ वण्णओ॥ हरियलभेय संकासा हलिहाभेयसन्निभा। सणासण-कुसुभनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ॥ संखक-कुंदसंकासा - खीरपूरसमप्पभा। रयय-हारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ॥
इसी प्रकार गन्ध,रस तथा स्पर्श आदि का विशद वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र में विद्यमान है। आचार्य श्री ने भी पर्याप्त वर्णन प्रस्तुत प्रणयन में सरलता से किया है। .
जैन धर्म दर्शन के स्यावाद आदि समस्त मौलिक सिद्धान्तों के प्रतिपादन में आचार्य श्री की लेखिनी प्रशस्त रूप से समर्थ हुई SEARR888888888888888888888888888
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