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आरोपण स्थापना - जीव कहलाता है। जैसे - मूर्ति में यह रुद्र हैं विष्णु हैं इन्द्र हैं इत्यादि । किसी वस्तु में अन्य वस्तु का आरोपण स्थापना निक्षेप कहलाता है।
३. द्रव्य निक्षेप
वस्तु की भूतकाल या भविष्य काल की अवस्था द्रव्यनिक्षेप कहलाता है। अर्थात् जो अर्थ भाव निक्षेप की पूर्व अवस्था हो या उत्तर अवस्था रूप हो उसे द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। जैसे किसी राजपुत्र को युवराज या राजा कहना । वह वर्तमान काल में राजा नहीं हैकिन्तु भविष्यत् काल में होने वाला है । अत: उसको वर्तमान काल में राजा कहना 'द्रव्यनिक्षेप' का विषय है।
४. भाव निक्षेप
संसार में विद्यमान वस्तु की वर्तमान अवस्था 'भाव निक्षेप' कहलाती है। अर्थात् किसी भी वस्तु का उसकी वर्तमान पर्याय की अपेक्षा से कथन भाव निक्षेप कहलाता है । जैसे वर्तमान में प्रधानमंत्री के पद पर कार्यरत नेता को प्रधानमन्त्री कहना ।
निक्षेप चतुष्टयी को सर्वद्रव्यों की अपेक्षा से घटित करके मोक्षमार्ग के लिए उनका भावरूप जानना नितान्त अनिवार्य है । भावनिक्षेप के अभाव में शेष तीनों निक्षेप निष्फल ही हैं। निक्षेप वस्तु के पर्याय हैं, स्वधर्म भी । अतएव विशेषावश्यक भाष्य में कहा है -
चत्तारो वत्थु पञ्झवा
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छब्बीस
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