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आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल
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भगवान् अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयासनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नेमिनाथ और पार्श्वनाथने विहार प्रान्तमे विद्यमान सम्मेदशिखरसे जिसे पारसनाथ-हिल कहते है-निर्वाण प्राप्त किया है। इसीलिए निर्वाण भक्तिमें आचार्य कहते है
"बीसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवदिदा धुदकिलेसा।
सम्मेदे गिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसि ॥" देव और मनुष्यादिके द्वारा वन्दनीय कर्मक्लेश रहित, बीस जिनेन्द्रोने सम्मेद पर्वतके शिखरसे निर्वाण प्राप्त किया, उन सबको नमस्कार हो। __ यह पर्वत शिखरजीके नामसे जैन समाजमे प्रख्यात है। प्रीवी कौसिल की अपील न० १२१, सन् १९३३ पर दिए गए फैसलेसे पर्वतके विषयमें यह बात विदित होती है-"पार्श्वनाथ पर्वतपर जो जिनमन्दिर है, वे निस्सन्देह वहुत प्राचीन है। किन्तु उनके इतिहासका अथवा उस समयका, जब कि सम्पूर्ण पर्वतके विषयमें पवित्रता सम्बन्धी पवित्र विचार सर्व प्रथम माने गए, बहुत कम ज्ञान है। पर्वत स्वय २५ वर्ग-मील विस्तारमें है और उसकी सबसे ऊँची चोटी ४५ सौ फुटपर है। लेफ्टिनेट बीडल, जो उस स्थानको सन् १८४६ ई० में गए थे, की रिपोर्ट के अनुसार वह झाडो तथा धने जगलसे ढंका हुआ था और जगली जानवरोसे भरा हुआ था। उसमे मनुष्य नही रहते थे। हा, कुछ सन्थालोकी-जगली लोगोकी झोपडिया थी, जो पर्वतके नीचेके भागपर थी।" आगे चलकर वीडल साहवने १८४६ ई० मे यह भी लिखा है कि-"पर्वतपर प्रतिवर्ष जनवरी मासमें एक पक्ष पर्यन्त एक धार्मिक मेला भरा करता था। पूजकोकी आवश्यकताओकी पूर्तिके लिए दूकानदार अनाज या दूसरी चीजे लेकर पर्वतपर चढते थे।"