Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 466
________________ कल्याणपथ जबसे भारतने अहिसात्मक सग्राम द्वारा स्वातंत्र्य प्राप्त किया है, सबसे सर्वत्र अहिसा के महत्त्वकी महिमा सुनाई पडती है । विश्व मैत्रीकी आधारशिलापर अवस्थित जैन विचारशैलीसे जगत् मार्ग-प्रदर्शन प्राप्त करना चाहता है । विश्वके अप्रतिम विद्वान् जार्ज वर्नाडशा जैन तत्त्वज्ञानपर अत्यन्त अनुरक्त प्रतीत होते है । जैन अहिंसाके आदेशको शिरोधार्य कर 'शा' महाशय निरामिषभोजीका जीवन व्यतीत करते है। कुछ समय पूर्व उनने श्री देवदास गाधीसे कहा था, कि "जैनधर्मके सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय है । मेरी आकाक्षा है, कि मृत्युके पश्चात् में जैन परिवारमे जन्म धारण करूँ।" जैन विचारोका गाधीजीके जीवनपर गहरा प्रभाव रहा है। उनकी अहिसात्मक साधनाके प्रति अपूर्व निष्ठाको देख, पश्चिमके बडे-बडे विद्वान् गाधीजीको जैनधर्मका अनुयायी मानते है । सी० एफ० एण्डज महाशयने एक बार बताया था, कि जब राष्ट्रके पथ-प्रदर्शनमे बापूका मार्ग तिमिर - तिरोहित बन जाता था, और वे आत्मप्रकाशके लिए लम्बेलम्बे उपवासोका आश्रय लेते थे, उस समय वे प्राय जैनशास्त्रोंके सम्यक् १. “His parents were the followers of the Jain school p. 9: Before leaving India his mother made him take the three vows of Jain, which prescribe abstention from wine, meat and sexual intercourse. p. 11, Vide “Mahatma Gandhi by Roman Rolland " “M. K. Gandhi's mother was under Jain influence" p. 101 vide George Catlin's book on “In the path of Mahatma Gandhi "


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