Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 474
________________ ४३८ जैनगासन पुरवासियो द्वारा करुणा कल्प-लताके मूलमे प्रेम, त्याग, शील, सत्य, सयम, अकिचनना आदिका जल न पहुचेगा, तब तक सुवास सपन्न सुमनोकी कैसे उपलब्धि होगी? आज उस लतिकाके पत्रोमे जल सिचन की बडी वडी वात सुनाई पडती है , लम्बी लम्बी योजनाए बनती है, किन्तु वेचारी जड जल-विन्द न मिलनेसे सूखती जा रही है। उस ओर कौन ध्यान देता है ? इससे तो कल्याणपथ और दूर होता जाता है। राष्ट्रीय स्वातत्र्य-सग्नामके समय सबको यह शिक्षा दी जाती थी, कि विना रचनात्मक कार्य किये केवल नेताओको जयघोषसे काम नही वनेगा, इसी प्रकार सच्चे लोकसेवको तथा गामकोसे कहना होगा, कि जब तक आप जीवदयाके कार्यक्रम को महत्त्वपूर्ण मान उस ओर शक्ति नही लगाते, तव तक पापचक्रकी अनुगामिनी विपदाएँ विचित्र चित्राकित अशोक चक्रसे नही डरेगी। महापुराणकार जिनसेन स्वामीका कथन है, कि धर्मप्रिय सम्राट् भरतके शासन में सभी प्रजाजन पुण्य चरित्र वन गये थे, कारण शासक का पदान्सरण गासित वर्ग किया करता है। इस सदाचरणके प्रसादसे सर्वत्र समृद्धि और आनन्दका प्रसार था। कविका यह कथन विशेप अर्थपूर्ण है कि सुकाल और सुराज्यवाले राजामे वडा निकट सम्बन्ध है।' भारतीय गासकोमे महाराज कुमारपाल वडे समर्थ और लोकोपकारी नरेश हो गए हैं, जिनके प्रश्रयमे साहित्य और कलाका वडा विकास हुआ। कुमारपाल प्रतिवोधसे जात होता है कि महाराज कुमारपाल अपने अन्त - करणको द्वादश अनुप्रेक्षाओ-सद्भावनाओसे विमल बनाते हुए अनासक्तिपूर्वक राज्यका कार्य करते थे । आजकी अहिसाका उच्चनाद करनेवाली सरकारकी छत्रछायामे मद्य, मासादिके सेवनकी प्रचण्ड प्रवृद्धिमे कोई १ "सुकालश्च सुराजा च स्वयं सन्निहितं द्वयम् ॥"-महापुराण ४१, ६६ २ "इय बारह भावण सुणिविराय, मणमन्झि वियभिय-भवविराउ । रज्जु वि कुणंतु चितइ इमाउ, परिहरिवि कुगइकारण पमाउ॥"

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