Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 481
________________ कल्याणपथ ४४५ देवताओके लिए किए जाने वाले वलिदानको रोके। दाल, मासादिका सेवन बन्द करावे। परस्त्रीअपहरणकर्ताको कड़ा दड दे। जुआ, मास, सुरा, वेश्या, आखेट, चोरी, परागना इन सात व्यसनोका सेवन महा पाप है। इनकी प्रवृत्ति रोक्ना चाहिए। ये अनर्थके काम समझानेसे वन्द नहीं होगे। राज्य नियमको लोग उरते हैं। अत. कानूनके द्वारा पापका प्रचार रोकना चाहिये। जीवोको सुमार्ग पर लगाना अत्याचार नहीं है। ऐसा करनेसे सर्वत्र गान्तिका प्रादुर्भाव होगा।" जिनकी अद्भुत अहिंसा केवल मनुष्यघातको ही हिला घोषित करती है और जो पशुओके प्राणहणको दोपाल्पद नहीं मानते हैं, उनकी दृष्टिको उन्मीलित करते हुए विश्वकवि रवीन्द्रवावू पहते है, "हमारे देगम जो धर्मका आदर्श है, वह हृदयको चीज है। बाहरी घरमै रहनेकी नहीं है। हम यदि Sanctity of life-जीवनकी महत्ताको एक वार स्वीकार करते है तो फिर पशु-पभी, कीट, पतग आदि किसीपर इसकी हह नही वाध लेते हैं । हम लोगोंके धर्मकी रचना स्वार्थके स्थानमे स्वाभाविक नियमने ली है । धर्मके नियमने ही स्वार्थको सयत रखनेकी चेप्टा की है।' जिस अन्त करणमे जीव दयाका पवित्र भाव जग गया, वह सभी प्राणियो को अपनी करुणा द्वारा सुखी करनेका उद्योग करेगा। करुणाका भाव अविभक्त रहता है । जहा आत्मीयोके प्रति स्नेह और दूसरोके प्रति विद्वेपका भाव रहता है, वहा पवित्र अहिसाके सिवाय अन्य मानवोचित सद्गुणोकी भी मृत्य हो जाती है। अतएव जीवनमे सामञ्जस्य, स्थिरता और सात्त्विक्ताकी अवस्थितिके लिए करुणामूलक प्रवृत्तियोका जागरण जरूरी है। ___कहते है, अमेरिकाके राष्ट्रपति एक समय आवश्यक कार्यसे नव्यभूपायुक्त होकर गाही सवारीपर जा रहे थे, कि मार्गमे एक वरालो पकमे निमग्न देखा और यह सोचा कि यदि इसकी तत्काल सहायता नहीं की गई, तो यह मर जायगा, अत. करुणापूर्ण हृदयकी प्रेरणासे वे उसी समय

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