Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 485
________________ ४४६ भान रहता है, किन्तु नित्य तथा आनदके सिंधु अपनी / आत्माकी पूर्णतया विस्मृति होती है । आजकी मूर्छित - मानवताको अपरिग्रहवादकी सजीवनी सेवन कराना आवश्यक है। अमर्यादित जीवन-स्तर बढानेसे क्या कभी भी तृप्तिकी उपलब्धि हो सकी है ? परिग्रहवादके शिखरपर समासीन अमेरिकाके जीवनका सम्यक् परिशीलन करनेवाले विद्वान् डा ०कुमार स्वामी ने लिखा था " स्नान टव, रेडियो, रिफ्रिजेरेटर आदि आनन्दप्रद पदार्थोकी अपेक्षा जीवन विशेष महत्त्वपूर्ण है । मुझे तो यह प्रतीत होता है, कि जीवन स्तर जितना वडा होता है, संस्कृति उतनी ही अल्प होती है । ऐसा कैसे ? पचास प्रतिशत से अधिक अमेरिकन लोगोमे ऐसे मिलेंगे, जिनने अपने जीवनमे कोई ग्रन्थ ही नही खरीदा हो, और उनका ही जीवन-स्तर सारे विश्वमे सबसे ऊंचा है। साक्षरता शिक्षा नही है और शिक्षा सस्कृति नही है ।" समृद्ध और सुखी भारतके भाग्य विधाता चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधान सचिव चाणक्यके प्रभाव और शक्तिको कौन नही जानता, किन्तु कवि विशाखदत्तके शब्दोमे उस महान् व्यक्तिका निवास-स्थान एक साधारण कल्याणपथ १. Life is larger than bath-tubs, radios and refrigera - tors I am afraid the higher the standard of living, the lower the culture Why, more than fifty percent of Americans have never bought a book in their life time and the Americans have the highest standard of living in the world Literacy is not education and education is not culture " 1 –Vedanta Keshri det 47, p 234 २ "उपलशकलमेतद्भेदकं गोमयानां वटुभिरुपहृताना बहिषां स्तूपमेतत् । शरणमपि समिद्भिः शुष्यमाणाभिराभि विनमितपटलान्तं दृश्यते जीर्णकुड्यम् ॥" - मुद्राराक्षस अक ४, १५३ २६

Loading...

Page Navigation
1 ... 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517