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कल्याणपथ
चंपतराय जैनने इसीलिए यह महत्त्वपूर्ण वाक्य लिखा था, कि “आज करुणा और दयाका पता नहीं है। उनकी ओटमे तो कपट और दुराचारको छुपाया जाता है।' __ जैनशासन कहता है, यदि तुम हिसादि पापोमे मग्न रहे आए, तो न तो नेता लोग तुम्हे बचा सकेगे और न तुम्हारा 'आस्मानी वाप' ही तुम्हारे काम आयेगा। देश यदि अहिसा पथसे विचलित न हुआ होता तो इस 'सुजलां सुफला' भूमिवासियोकी इतनी चिन्तनीय स्थिति न वनती जिसके कारण भारतके अन्तिम गवर्नर जनरल राजाजीको १९४६ के स्वाधीनतादिवसपर भयको परब्रह्म वताना पडा है । यथार्थमे सच्चा पर-ब्रह्म अहिसा है । आज वासना मे फंसनेके कारण हम दुखी हो रहे है। भोग और वैभवको परमार्थ सत्य माननेवाले यह सोचते है कि जनताका जीवन स्तर ( Standard of living ) जितना अधिक वढा होगा, उतनी ही अधिक शान्ति और समृद्धि होगी। यह एक मधुर तथा मोहक भूम है । इसे तो सभी मानेगे कि जीवनकी आवश्यक वस्तुओसे कोई भी व्यक्ति वचित न रहे, किन्तु विलासितावर्द्धक एव आमोद-प्रमोदप्रद पदार्थोके विषयमे यही वात उपयुक्त सोचना कल्याणकारी न होगा? भारतीय दृष्टिसे तो वास्तविक महिमाका उद्भव तव प्रारम्भ होता है, जब व्यक्ति या समाज यथाशक्ति अपनी आवश्यकताओ तथा भोगकी सामग्रीको मर्यादित करते हुए क्रमश उनको भी घटाते जाते है। इसीसे विश्वके अमर्यादित वैभवका अधिपति चक्रवर्ती, दिगम्बर श्रमणको महान मान, अपनी प्रणामाजलि अर्पित करते हुए उनकी चरण-रजसे अपनेको कृतार्थ सोच यह आकाक्षा करता है, कि आत्म-जागृतिका सूर्य उदित होकर
? "Mercy and pity are altogather unknown or only mcant to mask hypocricy and vice under their cloaks."
-Eng. Jain Gaz.