Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 487
________________ कल्याणपथ ४५१ चाहिए कि जब तक हमारा पद सुरक्षित है, तब तक हम कितना ही छलकपट, घूस, पापाचारका जीवन वितावे, हमारा कोई कुछ नही कर सकता है । उनको स्मरण रखना चाहिए कि पुण्यकी सपत्ति समाप्त होनेके पश्चात् समाजे मरी मक्खीके समान उनको निकाल फेकेगा और फिर उनको कोई दो कौड़ीको भी न पूछेगा। अधिकारके मदमे अपने आपको नहीं भूलना चाहिए। अधिकारी जव तक न सुधरेगा, तब तक प्रजाका नैतिक स्तर कैसे उन्नत होगा? सोमदेव सूरिकी सूक्ति कितनी मार्मिक है, राजा यदि "चौरेषु मिलित कुत क्षेम प्रजानाम्"। शासकको अन्यायका पक्षपाती न होकर न्याय, सत्य, करुणाका वन्दक होना चाहिए। पापियोकी दिखनेवाली उन्नति सुरचाप सदृश अल्पकालमे ही विनष्ट होनेवाली है। डाक्टर इकवालका पश्चिमकी भोग चतुर सभ्यताके प्रति कितना सुन्दर और सत्य कथन है - "तुम्हारी तहजीव अपर्ने खजरसे आपही खुदकुशी करेगी। जो शाखे नाजुक पै आशियाना बना नापायादार होगा।" जिस प्रकार धर्मचक्रके प्रेमी सम्राट अशोकने सत्य, अहिंसा, शील, सदाचार आदि पुण्य प्रवृत्तियोके प्रचारमे अपने सपूर्ण परिवार तथा शासन शक्तिको लगाकर देशमें नूतन जीवन ज्योति जगा दी थी, उसी प्रकार यदि वापूका नाम जपने वाला हमारा भारत-शासन हिंसाके विरुद्ध युद्ध बोलकर 'दया पर दैवतम्' की सर्वत्र प्रतिष्ठा स्थापित करनेके उद्योग मे लग जाय, तो भारत यथार्थमे अशोक सुखी और अपराजित वनकर जगत्को समृद्ध करनेमे सच्ची सहायता दे सकता है। महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण, ईसा, मूसा, नानक, जरदस्त आदि प्रमुख भारतीय धर्मोके महापुरुषोके जन्म दिनोको देशमे अहिंसा दिवस घोषित कराकर जनतामें सत्य और अहिंसाके पुण्यभाव भरनेका कार्य सहज ही हमारे गासक कर सकते है। मपूर्ण विश्वका अहिंसाकी ओर ध्यान खीचनेके लिए यदि एक

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