Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 480
________________ ४४४ जैनशासन आजके प्रवुद्ध कहे जानेवाले शासनमे नरकके प्रतीक कसाईखानोका विद्यमान रहना, मनोविनोदके लिये निरपराध जीवोका शिकार किया जाना, मास भक्षणका अमर्यादित प्रचार होना महान् कलककी वाते है। हिंसा पर विश्वास रखने वाले शासनमे इनकी अवस्थितिका औचित्य समझा जा सकता था, किन्तु आजकी नई दुनियामे इनकी अवस्थिति अत्यन्त शोचनीय तथा शीघ्र परिमार्जनीय है। जिस प्रकार चुनावके अवसर पर विज्ञान द्वारा उपलब्ध प्रचारकी सामग्रीका उपयोग ले जमीन आसमान एक किया जाता है, उसी प्रकार यदि उन साधनोका उपयोग भारतीय शासन करे, तो महत्त्वपूर्ण लोकसेवा होगी। जनता जनार्दन अथवा दरिद्र नारायणकी सेवा भी इसीमे समाविष्ट है। ___ एक दिन जैनधर्माचार्य श्री शान्तिसागर महाराजसे मैने जैन तीर्थ गजपथामे उपस्थित होकर पूछा कि आजकल विपद्ग्रस्त मानवताके लिए भारतीय शासनको आप क्या मार्ग बतायेगे ? आचायत्रीने कहा, लोगो को जैन शास्त्रोमे वर्णित रामचन्द्र, पाडवो आदिका चरित्र पढना चाहिये कि उन महापुरुषोने अपने जीवनमे किस प्रकार धर्मकी रक्षा की और न्यायपूर्वक प्रजाका पालन किया। आचायश्रीने यह भी कहा, "सज्जनोका रक्षण करना और दुर्जनोको दण्डित करना यह राजनीति है। राजाको सच्चे धर्मका लोप नही करना चाहिये और न मिथ्या-मार्गका पोषण ही करना चाहिए। हिसा, झूठ, चोरी, परस्त्रीसेवन तथा अतिलोभ इन पच पापो के करने वाले दडनीय है, ऐसा करनेसे राम-राज्य होगा। पुण्यकी भी प्राप्ति होगी। हिसा आदि पापही अधर्म तथा अन्याय है। गृहस्थ इन पापो का स्यूल रूपसे त्याग करता है। सत्य बोलने वालेको दड देना और झूठ बोलनेवालोका पक्ष करना अनीति है" उनने यह महत्त्वकी वात कही, राजा पर यदि कोई आक्रमण करे, तो उसे हटानेको राजाको प्रति-आक्रमण करना होगा। ऐसी विरोधी हिसाका त्यागी गृहस्थ नही है। शासकका धर्म है कि वह निरपराधी जीवोकी रक्षा करे, शिकार खेलना वन्द करावे,

Loading...

Page Navigation
1 ... 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517