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इतिहासके प्रकाशमें
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है। ग्रीक लोगोने पश्चिमी भारतमे जिन 'जिमनोसोफिस्टो' का वर्णन किया है वे जैन लोग थे। वे न तो बौद्ध थे और न ब्राह्मण थे। सिकन्दरने , दिगम्बर जैनोके समुदायको तक्षशिलामे देखा था, उनमेंसे कालोनस-- कल्याण नामक दिगम्बर जैन महात्मा फारस तक उनके साथ गए थे। इस युगमे यह धर्म २४ तीर्थकरो द्वारा निरूपित किया गया, उनमें भगवान् महावीर अतिम है।
मथुराके ककालीटीलेमे महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्त्वकी सामग्रीके सिवाय ११० जैन गिलालेख मिले है। जो प्राय कगानवगी राजाओके समयके है। स्मिथ महाशय उन्हें प्रथम तथा द्वितीय शताब्दीका मानते है। एक खड्गासन जैनमूर्तिपर लिखा है "यह अर (अरहनाथ) तीर्थकरकी प्रतिमा सवत ७८ में देवोके द्वारा निर्मापित इस स्तूपकी सीमाके भीतर स्थापित की गई।" ____ इस स्तूपके विषयमे फुहरर साहब लिखते है-"यह स्तूप इतना प्राचीन है, कि इस लेखकी रचनाके समय स्तूप आदिका वृत्तान्त विस्मृत हो गया होगा। लिपिकी दृप्टिसे यह लेख इडोसिथियन सवत् (शक) अर्थात् सन् १५० ईस्वीका निश्चित होता है। इसलिए ईसवी सन्से अनेक शताब्दी पूर्व यह स्तूप बनाया गया होगा। इसका कारण यह है कि यदि इसकी उस समय रचना की गई होती, जव कि मथुराके जैनी सावधानीपूर्वक अपने दानको लेखबद्ध कराते थे, तो इसके निर्माताओका भी नाम अवश्य जात रहना।" म्युजियम मथुराकी दूसरी रिपोर्टमें लिखा
3. The stupa mas so ancient that at the time, then the inscription was incised, its origin had been forgotten. On the evidence of its character the date of the inscription may be referred with certainty to the Indo-Scythian era and is equivalent A D. 150 The stupa. must therefore have been built several centuries before the beginning of