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जैनशासन
मुनियोके पास भेजकर उनसे अनेक विषयोपर प्रकाश प्राप्त किया करते थे। ___ अजमेरके पास वडली ग्राममे एक जैन लेख वीरनिर्वाण सवत् ८४ अर्थात ईसवी सन् से ४४३ वर्ष पूर्वका महामहोपाध्याय रा० ब० गौरीशकर होराचन्द प्रोझाने स्वीकार किया है। इससे ज्ञात होता है कि आजसे लगभग २४०० वर्ष पूर्व राजपूतानामे जैनधर्मका प्रचार था। दिल्लीके अशोक स्तम्भमे जैनधर्मका 'णिग्गठ' शब्द द्वारा उल्लेख किया गया है। प्रशस्तिके उस लेखमे बताया है कि सम्राट अशोकने अन्य सप्रदायोके अनुसार निर्ग्रन्थ (निगन्थ) पथके लिए 'धर्म-महामात्य' की नियुक्ति की थी। यह लेख ईसवी सन्से २७५ वर्ष पूर्व अर्थात् आजसे २२२१ वर्ष पूर्व जैनधर्मकी महत्त्वपूर्ण स्थितिको सूचित करता है। यदि वह महत्त्वपूर्ण अवस्थामे न होता, तो उसके लिए सम्राट अशोक विशिष्ट मत्रीकी नियुक्ति क्यो करता? ___ वरेण्ड जे० स्टेवेनसन, अध्यक्ष रायल एशियाटिक सोसाइटी इस निष्कर्पपर पहुँचे है कि दि० जैन सप्रदाय प्राचीन समयसे अबतक पाया जाता
१. "वीराय भगवते चतुरासीतिवसे कार्य जालामालिनिये रनिविठ मामिभिके"
२ "As a sect the Digambaras have continued to exist among them from the old down to the present day, the only conclusion that is left to us that the Gymnosophist, whom the Greeks found in Western India wherc Digambarism still prevails, wcc Jains and neither Brahmans nor Buddhists and that it was a company of Digambaras of this sect that Alexander fell in with near Texıla, one of them Calanus followed him to Persia. The creed has been preached by 24 Tirthankalas in the present cycle, Loid Mahavira being the last.