Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 375
________________ पराक्रमके प्रागणमे ३३६ हल्ल और अमात्य गगका नाम आता है। हल्लने श्रवणबेलगोलामें चतुर्दिगति जिनालय वनवाया था। दक्षिण भारतकी जैन वीरागनामोमें जक्कैयावी, जक्कलदेवी, सवियन्वी, भैरवीदेवी विशेष विख्यात है। महारानी भैरवी देवीने युद्धभूमिमें अपने प्रतिपक्षीके दात खट्टे किए थे। इस प्रकार दक्षिण भारतका इतिहास और वहाके महत्त्वपूर्ण अगणित गिला- . लेख जैनवीर पुरुषोके पराक्रम तथा गौर्यको स्पष्टतया प्रतिपादित करते ___ श्रीविश्वेश्वरनाथरेऊ कृत 'भारतके प्राचीन राजवश' (पृष्ठ २२७-२८) और रायबहादुर ओझाजीके 'राजपूतानाका इतिहास' (पृष्ठ ३६३) से विदित होता है कि वीरभूमि राजपूतानामे शासन करनेवाले चौहान, सोलकी, गहलौत आदि जैनधर्मावलवी वीर पुरुप थे। अजमेरके नरेश पृथ्वीराज प्रथमने जैनमुनि अभयदेवके प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित की थी। उसने रणथभोरके जैनमदिरकी सुवर्णजटित दहलान वनवाई थी। पृथ्वीराज द्वितीय जैनधर्मके सरक्षक थे। उनके चाचा महाराज सोमेश्वर जैनधर्मके प्रेमी थे। मोलको नरेग अश्वराज तथा उनके पुत्र अल्हण देव जिनभक्त थे। परिहारवशी काक्कुक नरेश कीर्तिशाली तथा जैनधर्मावलवी थे। महाराज भोजके सेनापति कुलचद्र जैन थे। सोलकी नरेश मूलराजने अनहिलवाडामें मनोन जिनमदिर बनवाया था। प्रतापी नरेश सिद्धराज, जयसिंहके मत्री मुजल और शातु जैन थे। महाराज कुमारपाल अनेक युद्ध-विजेता तथा जिनधर्म-भक्त थे। उन्होने अशोककी भाति धर्मप्रचारमे अपनी शक्ति लगाई थी , अनेक जैनमदिरोका निर्माण तथा हजारो प्राचीन शास्त्रोका सग्रह कराया था। राठौरनरेश सिद्धराज जैन थे। मम्मट तथा धवल महाराज भी | Alinister general Hulla`s contribution for the cause of Jain Dharma was the construction of famous Chaturvimsatı Jinalaya at Sravanbelgola Ibid p 142.

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