Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 458
________________ ४२२ जैनशासन अन्तरात्माकी आवाजके अनुसार देशमे अहिसात्मक उपायसे राजनैतिक जागरणका कार्य उठाया था, आज स्वतत्र भारतवर्ष तथा विश्व भी यह अनुभव करता है, कि उस व्यक्तिने देशमे कितनी शक्ति और चेतना उत्पन्न की। आवश्यकता है जीवन उत्सर्ग करनेवाले सच्चे, सहृदय, विचारशील सत्पुरुषो की। पवित्र जीवनके प्रभावसे पशु-जगत्मे भी नैसर्गिक क्रूरता आदि नहीं रहने पाती, तब तो यहा मनुष्योके उद्धारकी बात है, जो असभव नही कही जा सकती। ___ आज जो दुनियाम रगभेद, राष्ट्रभेद आदिकृत विषमताओका उदय है, वह अन्य कालमे दूर हो सकता है, यदि समर्थ मानवससारमे ऋषिवर उमास्वामीकी इस शिक्षाका प्रसार हो सके। पूजीवादकी समस्या भी सुलझ सकती है, यदि सम्पत्तिशालियोके हृदयमे यह बात जम जाय कि"बहारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः"-'बहुत आरम्भ और परिग्रहके कारण नरकका जीवन मिलता है। इससे अर्थको ही भगवान् मान भजन करनेवालोको अपना भविष्य ज्ञात कर जीवन-परिवर्तनकी वात हृदयमे उदित होगी। "अल्पारम्भपरिग्रहत्व मानुषस्य"-'थोडा आरम्भ और थोडा परिग्रह मनुष्यायुका कारण है।' छल प्रपचके जगत्मे निरन्तर विचरण करनेवाले राजनीतिज्ञोको आचार्य बताते है-"भाया तैर्यग्योनस्य - 'मायाचारके द्वारा पशुका जीवन प्राप्त होता है।' कूटनीतिज्ञ अपने षड्यन्त्रो को बहुत छिपाया करते है, इस आदतके फलस्वरूप पशु-जीवन मिलता है, जहा जीव अपने दुख-सुखके भावोको वाणीके द्वारा व्यक्त करनेमे असमर्थ होता है। इतना अधिक छिपानेकी शक्ति बढती है। पवित्राचरण, जितेन्द्रियता, सयम (Self Control) के द्वारा सुरत्वकी उपलब्धि होती है। आचार्य उमास्वामीके कथनसे यह स्पष्ट १ 'प्रारंभ' हिंसन कार्यको कहते है। 'परिग्रह' ममत्वभावको कहते है।

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