Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 452
________________ ४१६ जैनगासन निमित्त उन्हें कोई भी पाप या अनर्थ करनेमें तनिक भी सकोच नही होता । अपने और अपनोके आरामके लिए वे सारे ससारको भी दु खके ज्वालामुखी भस्म होते देखकर आनन्दित रह सकते है । वे यह नही सोचते कि इस अन्वारानाका परिणाम कभी भी सुखद नही हुआ है। आत्माको संस्कृत वनाना ( Soul Culture ) उन्हे पसन्द नही है । उन्हे इसके लिए अवकाश नही है । स्व० रवीन्द्रनाथ ठाकरने एक अमेरिकन से कहा था ' - " आप लोगोके पास अवकाश नही है । कदाचित् है भी, तो आप उसका उचित उपयोग करना नही जानते । अपने जीवनकी दौडमें तुम इस बातको सोचनेके लिए तनिक भी नही सकते कि, तुम कहा और किस लिए जा रहे हो। इसका यह फल निकला, कि तुम्हारी उस सत्यदर्शनकी शक्ति चली गई।" कारलाईल जैसा विद्वान् कहता है "Know thyself " - अपनी आत्माको जानो" के स्थानमे अव यह बात सीखो "Know thy work and do it” - अपने कामको जानो और उसे पूरा करो। अध्यात्मवादी यह कभी नही कहता कि अपने कर्तव्यपालनमे प्रमाद करो | उसका यह कथन अवश्य है, कि शरीरके साथ आत्माकी भी सुधि लेते रहो । स्वामी ( आत्मा ) की चिन्ता न कर सेवक (शरीर) की गुलामीमे ही अपनी शक्तिका व्यय करना उचित नही है। अधिक कार्यव्यस्त व्यक्तिसे शान्त भावसे पूछो कि इस जवरदस्त दौडधूपको कव तक करोगे ? शान्ति १. Rabindranatha Tagore said to me, “You Americans have no leisure; or if you have, you know not how to use it. In the rush of your lives, you do not stop to consider, where you are rushing to nor what is it all for The result is that you have lost the vision of the Eternal." - Vide James Bisset Pratt - India & its Faiths p. 473.

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