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पुण्यानुवन्वी वाङ्मय नाओकी ही विपुलता है। यह भाषा श्रुतिमधुर मालूम होती है। इसके विषयमें यह कयन यथार्थ है-"देसिल बनना सब जन मिटवा" ।
इस भाषामे पुष्पदन्त महाकविका महापुराण अत्यन्त कीर्तिमान है। ये पुष्पदन्त पट्खडागमके रचयिता पुष्पदन्त स्वामीसे भिन्न है। ये नवमी सदीमे हुए है, इनके पिता-माता पहिले शिवभक्त ब्राह्मण थे पञ्चात् उन्होने जैनधर्म स्वीकार किया था। अपने माता-पिताके द्वारा जैनधर्मको अगीकार करनेपर पुष्पदन्तने भी जैनशासनको स्वीकार किया होगा, ऐसा प्रतीत होता है। इनकी रचनामे गब्द, अर्थ, रसप्रवाह आदिकी दृष्टिसे अपूर्व सौदर्य है। महाकविके महापुराणमे १२२ सधिया है। ग्लोकसंख्या लगभग २० हजार है । यदि राष्ट्र भापामे इसका अनुवाद मूल सहित प्रकाशित किया जाय तो साहित्यरसिकोको महान् आनद प्राप्त होगा। कविके णायकुमारचरिउ और जसहचरिउ भी प्रख्यात ग्रथ है। रइधू कविकी दालक्षण पूजा प्रसिद्ध है, वह बहुत रसपूर्ण है। कविने हरिवगपुराण, रामपुराण, सिद्धचक्रचरित्र, सम्मत्तगुणनिधान आदि लगभग चौबीस ग्रथ पुराण, सिद्धान्त, अध्यात्म तथा छन्द गास्त्र आदिके सोलहवीं सदीमे बनाये थे। कनकामर मुनि रचित करकण्डुचरित्र भी एक सुन्दर रचना है। उसमे करकण्डुनरेगका आकर्पक चरित्र दिया है। यदि अपभ्र श साहित्यका गहरा अध्ययन किया जाय तो भारतीय इतिहास और साहित्यके लिये वहुमूल्य और अपूर्व सामग्री प्राप्त हुए विना न रहेगी , ! अभी पं० राहुल जीने स्वयभू कवि रचित पउमचरिउका मनन किया, तो उन्हें यह प्रतिभास हुआ, कि रामचरितमानसके निर्माता विख्यात हिन्दीकवि तुलसीदानजीकी रचना पर पउमचरिउका गहरा प्रभाव है। यह वात श्री राहुलजीने सन् १९४५ की सरस्वतीमे प्रकट की है। इसी प्रकार न जाने कितनी अवकारमे पड़ी हुई वाते प्रकाशमे आवेगी और कितनी भ्रान्त धारणाओका परिमार्जन न होगा? हिन्दी भाषामें भी वनारसीदास,