Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 367
________________ पराक्रमके प्रांगणमें ३३१ नुसार सल्लेखना कर चद्रगिरि पर्वतसे स्वर्गलाभ किया।" वे यह भी लिखते है कि श्रवणवेलगोलाके चद्रवस्ती नामके चद्रगिरिपर अवस्थित मदिरकी दीवालोमे सम्राट् चद्रगुप्त के जीवनको अकित करनेवाले चित्र है। डा० यस० डबल्यू० टामसने भी यह लिखा है कि चद्रगुप्त श्रमणोके भक्तिपूर्ण शिक्षणको स्वीकार करता था जो ब्राह्मणोके सिद्धातोके प्रतिकूल है। ___ जैनधर्मविद्वेषी विप्रवर्गने जैसे जैन देवस्थान, शास्त्रभण्डार, जैनमठ तथा जैन जनताके विनाशका निर्मम क्रूर कार्य किया, उसी प्रकार उनने जैन महापुरुषके चरित्रपर कालिमा लगानेमे कमी नहीं की। 'प्रतापी सम्राट् चद्रगुप्त मौर्य जैनधर्मके आराधक थे, वे क्षत्रिय कुलके शिरोमणि थे और उनने अपने जीवनका अन्त दिगम्बर जैन मुनिके रूपमे व्यतीत किया था।' यह बात प्राचीन प्राकृतके शास्त्र 'तिलोयपण्णत्ति' से भी समर्थित होती है "मउडघरसुचरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य । तत्तो मउडधरा दुप्पन्वज्ज व गिण्हंति ॥ ४१४८१॥ मुकुटधर राजाओमे अतिम चन्द्रगुप्त नामके नरेशने जिनेन्द्र दीक्षा धारण की इसके पश्चात् मुकुटधारी नरेश प्रव्रज्याको नही धारण करते है। his name & on it stands a magnificient temple called Chandra Bastı with its carved and decorated walls, portraying scenes from the life of the great Emperor He was a true hero and attained the heaven from that lull in the Jain manner of Sallekhana 2. "The testimony of Megasthenes would likewise seem to imply that Chandragupta submitted to the devotional teachings of Sramanas as opposed to the doctrines of the Brahmins “Vide P. 23. Jainism, or Early Faith of Asoka by F. W. Thomas.

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