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संस्कृत जैन कृष्ण साहित्य से आकृष्ट होकर वहां चला आता था। अतएव चन्द्रमा को वहां से आगे चलाना कठिन था क्योंकि जिस स्थान पर चन्द्रमा स्वयं उपस्थित हो उस स्थान के सौन्दर्य का चित्रण करने के लिए कवि को उपमान नहीं मिला।
दूसरे प्रकार का वस्तुवर्णन चरित्र विवेचन के साथ आपाततः आ गया है । अतः यहाँ मैंने उसे नहीं लिया है। चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कथाकाव्य का नायक प्रद्युम्न राजवंशोत्पन्न कुलीन और गुणशाली पुरुष है। वह २४ कामदेवों में स्थान प्राप्त प्रतिष्टित बाहुबली और पुण्यपुरुष है । वह जितेन्द्रिय सत्पुरुष है। प्रद्युम्न में शास्त्रीय दृष्टि से एक धीरोदात्त नायक के समर तगुण विद्यमान हैं। सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितियों से घिर जाने पर भी वह कभी अधीर नहीं होता और साहस नहीं खोता। विजयाद्रि की गफा में उसकी इस विशेषता का परिचय मिलता है जब वह फुफकारते हुए प्रचंड विषधर से भिड़ जाता है और पूंछ पकड़कर वह उसे भूमि पर पटक देता है।11 आम्रवृक्ष पर रहने वाले कपिरूपधारी धनद से भी प्रद्युम्न निर्भयता के साथ युद्ध करने लगता है ।12 इसी प्रकार कपित्थवन में कपिरूपधारी भयंकर असुर से उसने बाहुयुद्ध किया और उसकी सूंड, दांत और पैर पकड़कर उसे ऐसा घुमाया कि वह मदहीन हो गया ।1 वराहगिरि पर वराह के साथ भी उसने वीरता के साथ युद्ध किया ।14 प्रद्युम्न संयम और प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करने वाला है। कंचनमाला के प्रणयप्रस्ताव में उसकी संयम-शीलता का स्पष्ट परिचय मिल जाता है। द्वारका-विनाश सम्बन्धी भविष्यवाणी से उसके मन में विरक्ति जागत हो जाती है और वह दीक्षित होकर अंततः निर्वाण प्राप्त कर लेता है। कवि ने इस प्रकार प्रद्युम्न कुमार के चरित्र का एक उज्ज्वल पक्ष प्रस्तुत किया है।
__ अन्य पुरुष-पात्रों में श्रीकृष्ण, बलराम, नारद और कालसंवर के
११. प्रद्युम्न चरित ८.१५-१८ १२.
८.५६-६२ ८६४-६८ ८७१-८२
१३.
१४.
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