Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 281
________________ तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार २६३ श्रीकृष्ण चरित के विभिन्न रूप : तुलनात्मक विवेचन साहित्यकार प्रछन्न दार्शनिक और चिंतक हुआ करता है । वह अपने आसपास के जगत और जीवन को सूक्ष्मता के साथ देखता-समझता और प्रख्यात करता है। यदि चिंतनशीलता को सचेतनता का एक प्रमुख लक्षण माना जाए तो इस दृष्टि से साहित्यकार को सर्वाधिक चैतन्य युक्त मानना अयुक्ति-युक्त नहीं होगा । वह जिन परिस्थितियों में स्वयं जीता और अन्य का जीवन यापन देखता है तो उनसे कुछ अनुभूतियां बटोरता चलता है। इनके संग्रह की प्रवृत्ति उसके स्वभाव का एक सहज अंग बन जाती है। इसके समानांतर ही उसकी एक दुनिवार्य प्रवृत्ति और हो जाती है, जिसका संबंध इन बटोरो हुई अनुभूतियों की अभिव्यक्ति से है । उसका मन तब तक एक विशिष्ट उद्विग्नता की स्थिति में रहता है, जब तक वह अपने अनुभूत तथ्य को व्यक्त कर अन्य जन के मानस तक नहीं पहुंचा देता। इस संवेदनशील अभिव्यक्ति को ही कोई अग्राह्य मानकर उपेक्षित रख दे तो इसकी उसे साहित्यकार को सर्वथा स्वतंत्रता है। यही नहीं, अपने उद्देश्य की पूर्ति के पक्ष में यदि कथानक में यकिंचित् परिवर्तन भी नितांत आवश्यक माने तो रचनाकार के नाते वह ऐसा कर सकता है और करता भी आया है। वह इतिहासकार नहीं है और उसे इतिहासकार के रूप में देखने-परखने एवं उसकी रचना में ऐतिहासिक प्रामाणिकता की खोज करने के प्रयत्न भी समीचीन नहीं कहे जा सकते । इतिहास के स्थान पर इतिहास है और साहित्य के स्थान पर साहित्य-यह विचार ही युक्तियुक्त कहा जा सकता है। ___ अस्तु, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथानक पर आधारित रचनाएं युग की आवश्यकताओं के अनुरूप न्यूनाधिक रूप में इतिहास-भिन्न हो सकती हैं। इतिहासानुमोदन उनके लिए अनिवार्य शर्त नहीं होती । यही कारण है कि पौराणिक और ऐतिहासिक कथानकों पर आधारित रचनाएं भिन्न-भिन्न यूगों में भिन्न-भिन्न रूपों में मिलती हैं। क्योंकि, उस यूग की अपेक्षाएं और मांग अन्य युग से भिन्न होती हैं। यही क्यों, किसी एक ही युग की दो रचनाओं में भी किसी एक ही ऐतिहासिक कथानक के भिन्न रूप हो सकते हैं । कारण यह है कि प्रत्येक रचनाकार अपने पृथक् उद्देश्य की पूर्ति के पक्ष में किसी एक ही कथानक का प्रयोग करता है। ऐसी स्थिति में एक रचनाकार एक प्रकार का परिवर्तन कर देता है तो दूसरा रचनाकार अन्य प्रकार का। दोनों मौलिक कथानक से भी भिन्न हो जाते हैं और परस्पर भिन्न भी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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