Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 285
________________ तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार २६७ दिया है । यह अनुशीलन का अन्यतम निष्कर्ष और तथ्य है. जो अपने आप में एक नूतन प्रयत्न है । (१६) सप्तम और अष्टम अध्यायों में राजस्थानी से अनुप्राणित वृज और आदिकालीन हिंदी भाषा के जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण तथा स्फुट और मुक्तक गेय काव्यों का मैंने अनुशीलन प्रस्तुत किया है। इनका जैन परंपरा के श्रीकृष्ण साहित्य के अध्ययन में ऐतिहासिक महत्व है। यह दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । प्रथम जैन साहित्य के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से और दूसरा हिन्दी साहित्य के अध्ययन में इसकी देन की दृष्टि से । ये दोनों तथ्य-परक उपलब्धियां कम महत्वपूर्ण नहीं वरन् अत्यंत महत्व की हैं । स्मरण रहे कि इनमें श्रीकृष्ण चरित्र का आधार वही मेरा श्रीकृष्ण- अध्ययन ही है, जिसे मैंने षष्ठ अध्याय में उपस्थित कर दिया था । ( १७ ) गजसुकुमाल का चरित्र नेमिनाथ और श्रीकृष्ण के सम्बन्धों को स्पष्ट करता है । इसके साथ प्रद्युम्न और गजसुकुमाल के द्वारा जैन तत्त्वों का ग्रहण करना जैन दर्शन के लक्ष्य को उपस्थित कर देता है । (१८) गजसुकुमाल का चरित्र एक उज्ज्वल चरित्र है । यह जैन वीतराग रस का एक श्रेष्ठ आदर्श उपस्थित कर देता है जो एक अन्यतम उपलब्धि है । ( १९ ) जैन मुक्तक काव्य गेयता के साथ करुण विप्रलंभ का एक ऐसा बेजोड उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिसकी परिणति जैन वीतराग रस की पुष्टि करती है । इससे राजीमति का चरित्र उज्ज्वल रूप में सामने आता है । सांसारिक असारता से ऊपर उठकर वह साधक को एक उच्च आध्यात्मिक धरातल प्रस्तुत कर देती है जो असामान्य और असाधारण है । ( २० ) लोकसाहित्य और लोक-संस्कृति को स्पर्श करने वाली ये कृतियां एक सांस्कृतिक अक्षुण्ण लोकप्रियता का क्षेत्र उपस्थित कर देती हैं । (२१) मेरे इस अध्ययन से एक नहीं तो अनेक प्रदेश अध्ययन और अनुशीलन के क्षेत्र में नये आयाम उपलब्ध कर देते हैं । इनमें से कुछ का निर्देश कर मैं अपना उपसंहार करूंगा । यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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