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परिशिष्ट - २
२७६ से धन्य हो उठा है एवं माधुरी भक्ति के लिए राधाकृष्ण की प्रेमलीला ही प्रमुख आधार शिला रूप में दिखाई देती है ।
इसके विपरीत अनेक प्राचीन कृष्ण चरित्र ग्रंथों में राधा का उल्लेख भी नहीं मिलता । महाभारत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराणादि ग्रंथ इस रूप में उल्लेखनीय हैं । राधाभक्त विद्वानों की धारणा है कि 'राधा' एक अति प्राचीन नाम है। उनका कथन है कि वेदों से लेकर आज के अर्वाचीन साहित्य तक के सुदीर्घ कालीन साहित्य में राधा वर्णित है । संभवतः यह वर्णन कहीं विपुल हो गया हो और कहीं विरल रह गया हो, किंतु रहा अवश्य है । ऐसे विद्वानों ने अपने अनुसन्धान के आधार पर स्वविचार के समर्थन में अनेक संदर्भ एवं प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। ऋग्वेद में राधा का नाम मिलता है ( १|३०|४० एवं ३ | ४१|१० ) । इसी प्रकार सामवेद (१६।५७।३७ ) और अथर्ववेद ( २०४५।२ ) में भी "राधा" शब्द का प्रयोग हुआ है । बृहद् ब्रह्मसंहिता में राधा और कृष्ण में कोई अन्तर नहीं माना गया है ।
यः कृष्णः सापि राधा या राधा कृष्ण एव सः ।
जो कृष्ण है सो ही राधा है, जो राधा है सोई कृष्ण है । सनत्कुमार संहिता में भी इसी प्रकार राधा और कृष्ण में अभिन्नत्व स्थापित किया गया है ।
राधाकृष्णेति संज्ञाढ्यं राधिका रूपमंगलम् ।
कृष्णोपनिषद् एवं कठवल्ली उपनिषद् में भी राधा के रूप सौंदर्य का वर्णन मिलता है । राधिका महिमा का प्रतिपादन भी राधिकोपनिषद् में मिलता है । पद्मपुराण में भी राधा का नाम आता है और उसकी महत्ता को प्रतिपादित किया गया है । 2 शिवपुराण में ब्रह्माजी की घोषणा है कि राधा साक्षात् गोलोक में निवास करने वाली गुप्त स्नेह में निबद्ध हुयो कृष्ण की पत्नी होगी । नारदपुराण में 'राधिका नाथ' संबोधन के साथ नारद जी ने श्रीकृष्ण की स्तुति की है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्रमुखतः राधा-कृष्ण की लीलायें ही वर्णित की गयी हैं । मत्स्यपुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, भविष्यपुराण आदि पुराण ग्रन्थों में भी राधा का उल्लेख उपलब्ध होता है । देवी भागवत में राधा को श्रीकृष्ण के वामांग से उत्पन्न हुई बताया गया है ।
१. वामाङ्गसहिता देवी राधावृन्दावनेश्वरी । सुन्दरी नागरी गौरी कृष्णहृद्भृंगमंजरी ॥ २. देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परमदेवता ।
सर्वलक्ष्मी स्वरूपा सा कृष्णाह्लादस्वरूपिणी ॥५३॥ ३. कलावती सुता राधा, साक्षात् गोलोकवामिनी । गुप्तस्नेहनिबद्धा सा कृष्णपत्नी भविष्यति ॥ ४० ॥ शिवपुराण
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