Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 305
________________ परिशिष्ट-२ २८७ भी केवली और मुक्त हो गयी। रथनेमि भगवान के पास गये और सब बताया। अन्त मेंतपस्या कर वे मोक्षगामी बने। वैदिक साहित्य में जो स्थान राधा-कृष्ण का है वैसा ही स्थान जैन साहित्य में अरिष्टनेमि और राजीमती का है। मैंने परिशिष्ट-२ में इसके पूर्व राधा पर विवेचन दिया है। राधा आह्लादिनी शक्ति और श्रीकृष्ण की प्रेम देवी है। पर, राजीमती, विरहिणी होकर भी साध्वी है और अतुलनीय संयम की मूर्ति है : इसलिए बेजोड़ और अनुपम है। इन दोनों की तुलना अपने-अपने क्षेत्र में अतुलनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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