Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 296
________________ परिशिष्ट-२ राधा और राजीमती राधा ऐतिहासिक पात्र है अथवा नहीं ? लोक साहित्य एवं लौकिक साहित्य में श्रीकृष्ण का राधा के साथ इतना घनिष्ठ संबंध प्रतिपादित मिलता है कि राधा के अभाव में श्रीकृष्ण का नाम भी अपूर्ण प्रतीत होता है। (राधाकृष्ण) किंतु यह एक विचारणीय प्रश्न होता है कि क्या वास्तव में इस नाम की स्त्री श्रीकृष्ण के जीवन में आयी और रही भी थी? क्या राधा ऐतिहासिक पात्र है ? इतना स्पष्ट है कि जैन आगम और आगमेतर ग्रंथों में कहीं भी राधा नाम की किसी स्त्री की कोई चर्चा नहीं मिलती। जैन और वैदिक ग्रंथों में श्रीकृष्ण की प्रमुख रानियों के नाम गिनाए गये हैं उनमें राधा जैसा कोई नाम नहीं हैं, किन्तु गवेषणा के मार्ग पर केवल इस तथ्य के कारण ही गतिहीन हो जाना औचित्यपूर्ण और समीचीन प्रतीत नहीं होता। हिंदी साहित्य के आसन्न-भूतकालीन अतिमहत्वपूर्ण ब्रज-साहित्य श्रीकृष्ण के साथ-साथ ऐसा राधामय हो गया है कि उस आधार पर भी राधा के अस्तित्व को हठात् ही सुगमता से नकारा नहीं जा सकता। ब्रजभाषा के साहित्य से हमारी संस्कृति भी दूर तक प्रभावित हुई और यही संस्कृति आगे से आगे प्रबल और गहन होती गयी है । भारतीय संस्कृति में राधा और श्रीकृष्ण का अनन्य संबंध है । ये दोनों नाम परस्पर ऐसे अन्योन्याश्रित हो गये हैं कि एक के अभाव में अन्य के नाम की कल्पना भी नहीं की जा सकती। काव्य, चित्र, मूर्तिकला आदि सभी क्षेत्रों में श्रीकृष्ण के साथ अभिन्न रूप में राधा की उपस्थिति मिलती है । इनमें प्रमुखता निश्चित रूप से श्रीकृष्ण को ही प्राप्त हुई है। तथापि कतिपय ग्रन्थों में राधा की महिमा और गरिमा अपेक्षा कृत अधिक भी आंकी गयी है। राधा के माता-पिता, जन्मस्थान एवं अन्य स्वजन-परिजनों के नामोल्लेख भी हैं। ऐसी स्थिति में अविचारित रूप में ही राधा को अनैतिहासिक या कल्पनाप्रसूत पात्र मान लेना युक्तियुक्त नहीं हो सकता। कम से कम इतना तो है ही कि यह व्यापक विचार की अपेक्षा रखने वाला महत्वपूर्ण प्रश्न है। श्रीकृष्ण की लीलाओं का आधार भी राधा ही रही है। और, यह महत्वपूर्ण बिंदु है कि कृष्ण साहित्य का अधिकांश भाग इसी लीला गान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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