Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ २७० जैन परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य आसक्ति पूर्वक किया गया राज्य दुर्गति का कारण है, फिर लम्बे समय की तो बात ही क्या है ? देव ने अपनी देवशक्ति से हरि-युगल की करोड़ पूर्व की आयु का एक लाख वर्ष में अपवर्तन किया तथा अवगाहना (शरीर की ऊँचाई) को भी घटाकर १०० धनुष की कर दी। देव उनको उठा कर ले गया और नागरिकों को सम्बोधित करके कहाआप राजा के लिए चिन्तित क्यों हैं ? मैं तुम्हारे लिए परम करुणाकार राजा लाया हैं। नागरिकों ने 'हरि' का राज्याभिषेक किया । सप्त व्यसन के सेवन करने के कारण वे नरक गति में उत्पन्न हुए। युगलिक नरक की गति में नहीं जाते, पर वे गये। इसलिए यह घटना जैन साहित्य में आश्चर्य के रूप में उटैंकित की गई है। राजा हरि की जो सन्तान हुई वह हरिवंश के नाम से विश्रुत हुई। हरि के ६ पुत्र थे १ पृथ्वीपति २. महागिरि ३. हिमगिरि ४. वसुगिरि ५. नरगिरि ६. इन्द्रगिरि अनेक राजाओं के पश्चात् २०वें तीर्थंकर मुनि सुव्रत भी इसी वंश में हुए। हरिवंशपुराण के अनुसार यदुवंश का उद्भव हरिवंश में हुआ है। भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण हरिवंश में उत्पन्न हुए थे। श्रीकृष्ण वंश परिचय श्रीकृष्ण के जैन व वैदिक परम्परा के अनुसार वंश परिचय इस प्रकार है (१) श्वेताम्बर जैन पम्परा सौरी वीर अंधकवृष्णि भोगवृष्णि १. जैन धर्म का मौलिको इतिहास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316