Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 282
________________ २६४ जैन-परम्परा में श्रीकृष्ण साहित्य श्रीकृष्ण चरित भारतीय वाङ्मय का एक अति महत्वपूर्ण पक्ष रहा है। प्रत्येक युग, प्रत्येक भाषा और प्रत्येक सांस्कृतिक धारा में श्रीकृष्ण साहित्य को अपनत्व मिला है। लोक-जीवन, लोक-संस्कृति एवं लोक-साहित्य भी श्रीकृष्णमय रहा है। जैन साहित्य भी इसका अपवाद कैसे हो सकता है ? श्रीकृष्ण जीवन को जैन साहित्यकारों ने भी अपनाया और जैन साहित्य भ ण्डार की श्रीवृद्धि भी हुई। निश्चय ही साहित्य इतिहास नहीं हो सकता, दोनों के कार्य क्षेत्र ही भिन्न-भिन्न हैं। साहित्य अपने कार्य क्षेत्र-“वर्तमान" में ही रमे रहने के लिए है। वह सदा सजीव, सामयिक और आज के जीवन को उन्नत करने वाला होगा। उसे बीते काल की ओर दृष्टिपात करने का अवकाश ही नहीं मिलता। आज को संवारने के लिए अपने लक्ष्य में उसे कल का भी कोई रंग उपयुक्त लगता है तो वह उसे प्रयुक्त कर लेता है। मात्र कथानक ही ऐतिहासिक होता है, कथ्य नहीं। वह जो कुछ कहता है-वह आज की बात है, जिसे कल की बात के ब्याज से कह दिया है। ___ इस दृष्टि से ऐतिहासिक घटना का यथावत् वर्णन करने को साहित्यकार प्रतिबद्ध नहीं होता। अक्षरशः अविकल रूप में ऐतिहासिक वत्तांत का प्रस्तुतीकरण साहित्यकार के लिए आवश्यक नहीं होता । वह जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐतिहासिक कथानक का आश्रय ले रहा है उस निमित्त जितना भाग आवश्यक है, उतना वह अपना लेता है और कथानक के शेष भाग को छोड़ देता है। जैन साहित्यकारों ने भी यही किया। इस कोटि की साहित्यिक रचनाओं को छोड़कर इस वर्ग के रचनाकारों ने अपने-अपने युग की धार्मिक (जैन) अपेक्षाओं, जैन विचारधाराओं एवं आस्थाओं के अनुरूप ही श्रीकृष्ण चरित को अपनाया। अतः इस कथाधारा द्वारा वैदिक परंपरा में प्रचलित कृष्ण कथा के रूप से भिन्न आकार ग्रहण किया जाना स्वाभाविक ही है। इसी प्रकार जैन साहित्यकारों ने अपने अलग-अलग दृष्टिकोणों के साथ और अलग-अलग उद्देश्यों के साथ श्रीकृष्ण चरित को अपनाया है। अतः जैन साहित्य में ही श्रीकृष्ण कथा के परिवर्तित रूप मिल जाते हैं । मौलिक रूप में तो प्रमुख तथ्य वैदिक और जैन परंपरा में समान ही रूप से वणित मिलते हैं, किंतु दृष्टिकोण की भिन्नता से श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को दोनों परंपराओं में तनिक भिन्न ही रूप-रंग मिल गया है। इसी प्रकार जैन परंपरा में श्रीकृष्ण चरित प्रायः सभी ग्रन्थों में एक ही सामान्य धरातल पर अवस्थित होते हुए भी उन में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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