Book Title: Jain Sahitya me Shrikrishna Charit
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 269
________________ तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार २५१ के प्रतिपादन में श्रीकृष्ण जीवन के जिस प्रसंग का उपयोग समीचीन समझा गया तब उसका उपयोग कर लिया गया । अस्तु, आगमों में श्रीकृष्ण जीवन के अनेकों प्रसंग सम्मिलित अवश्य हो गये हैं, किन्तु जैन श्रीकृष्ण-कथा के इस आरंभिक स्वरूप में ये प्रसंग क्रमबद्धता के साथ प्रस्तुत नहीं हो पाए हैं। वहां इन प्रसंगों में न तो कार्य-कारण संबंध स्थिर हो पाता है और न पूर्वापर स्वरूप ही बन पाता है । साथ ही ये विभिन्न प्रसंग अन्यान्य विषयक कथाओं के बीच-बीच में बिखरे पड़े हैं । इन्हें एकत्र कर व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध स्वरूप देने के प्रयासों से आगमेतर ग्रंथ अस्तित्व में आए । आगमेतर ग्रंथ भी विभिन्न विषयों और प्रयोजनों से सम्बद्ध रहे हैं । साहित्य क्षेत्र में ज्यों-ज्यों भाषा माध्यम बदलता गया त्यों-त्यों यह कथानक युगीन भाषा में ढ़लता गया और जैन कृष्ण कथा संबंधी विशाल कृति-समुच्चय निर्मित हो गया । ऐतिहासिक महापुरुष श्रीकृष्ण के जीवन चरित को निःसंदेह सभी दिशाओं से अपनाया गया है और वैदिक वाङ्मय भी इसका अपावद नहीं है । वैदिक साहित्य का विपुल भाग श्रीकृष्ण संबंधी है । इन ग्रंथों से श्रीकृष्ण के स्वरूप, व्यक्तित्व, जीवन और विशिष्टताओं पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । वैदिक परंपरा के ग्रंथों का अध्ययन एक और तथ्य भी प्रकाशित करता है कि श्रीकृष्ण नामक एक ही नहीं एकाधिक विशिष्ट व्यक्ति रहे हैं । देवकी - वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण तो वैदिक साहित्य में प्रतिपाद्य रहे ही हैं, किन्तु इनसे भी भिन्न इसी नाम के ( श्रीकृष्ण) अन्य जन भी रहे हैं और उनकी चर्चा भी इस साहित्य में हुई है । उन सभी श्रीकृष्णों का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहा है और अपनी-अपनी विशेषताओं के निरूपण हेतु उन्हें इस साहित्य में यथोचित स्थान प्राप्त हुआ है । इन अनेक श्रीकृष्ण-स्वरूपों में से देवकीनंदन श्रीकृष्ण को भिन्न करके पहचानना अपने आप में अवश्य ही एक गंभीर और महत्व पूर्ण कार्य रहा होगा । इन्हीं श्रीकृष्ण ( देवकीनंदन ) के चरित का चित्रण भी वैदिक परंपरा में अपनी मान्यताओं और दृष्टिकोणों के अनुरूप ही हुआ है । प्रकार बौद्ध साहित्य में भी श्रीकृष्ण को समुचित स्थान मिला है, किन्तु बौद्ध धर्म और सिद्धांतों के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व निरूपित हुआ है । बौद्ध धर्म-ग्रंथों में जातक कथाओं का विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है । इनमें से घट जातक का संबंध श्रीकृष्ण चरित से है । जैन श्रीकृष्ण चरित की अपेक्षा वैदिक श्रीकृष्ण का चरित कांफी भिन्न है । बौद्ध साहित्य में उपलब्ध उनका रूप और भी भिन्न है । सभी ने इस एक चरित का उपयोग अपने ढंग से व अपनी दृष्टि से किया है । परिणामतः इन सभी श्रीकृष्ण-स्वरूपों का www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316