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तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एवं उपसंहार
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के प्रतिपादन में श्रीकृष्ण जीवन के जिस प्रसंग का उपयोग समीचीन समझा गया तब उसका उपयोग कर लिया गया । अस्तु, आगमों में श्रीकृष्ण जीवन के अनेकों प्रसंग सम्मिलित अवश्य हो गये हैं, किन्तु जैन श्रीकृष्ण-कथा के इस आरंभिक स्वरूप में ये प्रसंग क्रमबद्धता के साथ प्रस्तुत नहीं हो पाए हैं। वहां इन प्रसंगों में न तो कार्य-कारण संबंध स्थिर हो पाता है और न पूर्वापर स्वरूप ही बन पाता है । साथ ही ये विभिन्न प्रसंग अन्यान्य विषयक कथाओं के बीच-बीच में बिखरे पड़े हैं । इन्हें एकत्र कर व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध स्वरूप देने के प्रयासों से आगमेतर ग्रंथ अस्तित्व में आए । आगमेतर ग्रंथ भी विभिन्न विषयों और प्रयोजनों से सम्बद्ध रहे हैं । साहित्य क्षेत्र में ज्यों-ज्यों भाषा माध्यम बदलता गया त्यों-त्यों यह कथानक युगीन भाषा में ढ़लता गया और जैन कृष्ण कथा संबंधी विशाल कृति-समुच्चय निर्मित हो गया ।
ऐतिहासिक महापुरुष श्रीकृष्ण के जीवन चरित को निःसंदेह सभी दिशाओं से अपनाया गया है और वैदिक वाङ्मय भी इसका अपावद नहीं है । वैदिक साहित्य का विपुल भाग श्रीकृष्ण संबंधी है । इन ग्रंथों से श्रीकृष्ण के स्वरूप, व्यक्तित्व, जीवन और विशिष्टताओं पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । वैदिक परंपरा के ग्रंथों का अध्ययन एक और तथ्य भी प्रकाशित करता है कि श्रीकृष्ण नामक एक ही नहीं एकाधिक विशिष्ट व्यक्ति रहे हैं । देवकी - वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण तो वैदिक साहित्य में प्रतिपाद्य रहे ही हैं, किन्तु इनसे भी भिन्न इसी नाम के ( श्रीकृष्ण) अन्य जन भी रहे हैं और उनकी चर्चा भी इस साहित्य में हुई है । उन सभी श्रीकृष्णों का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहा है और अपनी-अपनी विशेषताओं के निरूपण हेतु उन्हें इस साहित्य में यथोचित स्थान प्राप्त हुआ है । इन अनेक श्रीकृष्ण-स्वरूपों में से देवकीनंदन श्रीकृष्ण को भिन्न करके पहचानना अपने आप में अवश्य ही एक गंभीर और महत्व पूर्ण कार्य रहा होगा । इन्हीं श्रीकृष्ण ( देवकीनंदन ) के चरित का चित्रण भी वैदिक परंपरा में अपनी मान्यताओं और दृष्टिकोणों के अनुरूप ही हुआ है ।
प्रकार बौद्ध साहित्य में भी श्रीकृष्ण को समुचित स्थान मिला है, किन्तु बौद्ध धर्म और सिद्धांतों के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्व निरूपित हुआ है । बौद्ध धर्म-ग्रंथों में जातक कथाओं का विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है । इनमें से घट जातक का संबंध श्रीकृष्ण चरित से है । जैन श्रीकृष्ण चरित की अपेक्षा वैदिक श्रीकृष्ण का चरित कांफी भिन्न है । बौद्ध साहित्य में उपलब्ध उनका रूप और भी भिन्न है । सभी ने इस एक चरित का उपयोग अपने ढंग से व अपनी दृष्टि से किया है । परिणामतः इन सभी श्रीकृष्ण-स्वरूपों का
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