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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य अध्ययन करने से इन विभिन्न धर्मों का पारस्परिक दृष्टि-भेद स्पष्ट हो जाता है। जैन कथा साहित्य में कृष्ण
प्रत्येक देश, जाति और धर्म के साहित्य में कथाओं का बड़ा जनप्रिय स्थान रहा है। लोक साहित्य में भी कहानियों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कुतूहल और जिज्ञासा की प्रवृत्ति के कारण कथाएं श्रोता का मन आकर्षित करने में अत्यन्त सफल रही हैं। और, अंत तक अपने साथ उन्हें जोड़ कर रखने की क्षमता भी रखती हैं। कोरे उपदेश शुष्क व नीरस हो जाते हैं। सर्वसाधारण उनके प्रति आकर्षित नहीं हो पाता । इसी कारण उपदेशों का लाभ उन तक पहुंच वहीं पाता। जब उपदिष्ट कथ्य कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है तो रुचिकर हो जाता है और लक्षित व्यक्तियों तक सुगमता से पहुंच जाता है। धार्मिक नेता अनुयायियों में ऐसी कथाओं के माध्यम से अपेक्षित परिवर्तन लाने में अन्य मार्गों की अपेक्षा अधिक सफल होते हैं। कथा-कहानियों में किसी सिद्धांत का कोरा दर्शन न होकर दृष्टांत रूप में व्यावहारिक रूप से घटित घटना का रूप होता है, अतः वह सिद्धांत सजीव, सहज और अधिक विश्वसनीय हो उठता है और प्रभावशाली ढंग से परिवर्तन उपस्थित कर देता है । ___ जैन वाङ्मय में भी कथा साहित्य के इस अद्भुत चमत्कारपूर्ण प्रभाव के कारण इसे असाधारण प्रश्रय मिला है। केवल तात्त्विक विवेचन, दार्शनिक विचार और धार्मिक क्रियाओं को ही जैन साहित्य का प्रतिपाद्य समझने वाले भ्रम में हैं। यथार्थ में उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण, रोचक तथा लोकप्रिय अंश तो कथा साहित्य का ही है। वस्तुत: जैन कथा स हित्य का एक विशाल भण्डार है । जैन कथाएं विभिन्न भाषाओं में विभिन्न शैलियों और रूपों में मिलती हैं । जैन कथाओं में लोक कथाएं भी हैं तो नैतिक आख्यायिकाएं भी हैं, साहसिक कहानियां भी हैं तो पशुपक्षियों की और देवी देवताओं की कहानियां भी हैं । मुक्तक रूप में स्वतंत्र कहानियां भी मिलती हैं और कहानियों के समुच्चय भी मिलते हैं जिन्हें शृंखालाबद्ध कर विशद कथानक का रूप दिया गया है।
__ जैन कथाओं के कथानक कल्पना पर आधारित भी हैं तो इतिहास पुराणादि पर भी आधारित हैं। महाभारत,श्रीमद् भागवत आदि प्रतिष्ठित जैनेतर ग्रंथों का आश्रय भी निस्संकोच भाव के साथ ग्रहण किया गया है । इस प्रकार कथानक चाहे इतिहास-पुराणों से ग्रहण किए गए हों और चाहे
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