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जैन-परम्परा में श्रीकृष्ण साहित्य सहेल्या सब ही विलखाणी, नेमजी की... त्याग्या सब सोलह सिंणगारा, आभूषण रत्नजड़ित सारा,
लगे मोहे सब ही सुख भारा, छोड़कर चाली निरधारा। दोहा : मातपिता परिवार को, तजता न लागी वार ।
वियोग कर चली आपसं, जाय चढ़ी गिरनार, झूमती छोड़ी मां प्यारी, नेमजी की... दया जब पशुअनकी आई, त्याग जब दीनों छिन मांई ।
नेमजी गिरनारे जाई, पशु के बंधन छुड़वाई। . दोहा : नेम राजुल गिरनार पे, लीनो संजम धार ।
लवणराम करी लावणी, उपन्यो केवलज्ञान ।
जिन्हों की क्रिया बड़ी प्यारी, नेमजी की जान... (१३) कृष्ण लावणी
पुरुषोत्तम प्रगट्या अवतारी, जगत में महिमा विस्तारी। टेर । देवकी को नंदन है नीको, हुओ जादव कुल में टीको,
भादवा वदी अष्टमी को, जनम जब हुओ हरिजी को। दोहा : तिन अवसर वसुदेवजी, मन का सोध मिटाय ।।
कोमल कर में लेय कान्ह को, जावे गोकुल मांय । भवन से आय उतर हेटा, द्वार के ताला जड्या सेंठा ।
कंस का पहरा बाहर बैठा, निकल जाने का नहीं रास्ता। दोहा : चरण अंगुल लगावियो, गोविंद को तिण वार ।।
खड़-खड़ ताला टूट पङ्या, कोई सड़ सड़ खुल्यो द्वार । अखण्डित निकल गए बाहरी, जगत में .. अंधेरी रात घटा छाई, जोर से गाजे गगन मांई ।
चमकती बिजल्यां दर्शाई, वायरी बाजे जोश खाई... दोहा : अति उमंग आकाश से, पड़ रही जल की धार ।
सहस्र नाग छांया कर दीनि, पड़े न बूंद लगार। जिन्हों का पुण्य बड़ा भारी, जगत में महिमा... निकल मथुरा से गोकुल धावे, अपट जमुनाजी पुर जावे ।
निकलवा मारग नहीं पावे, विविध मिसतल मन में ठावे । दोहा : पग फरस्यो गउपाल को, जमुना हुई दो भाग ।
वसुदेवजी तुरन्त निकल गये, हुलस्यो हियो अथाग ।
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