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भगवान् महावीर
संसार जुआ है । उसे खींचने वाले दो बैल हैं-जन्म और मौत । संसार का दूसरा पार्श्व है—मुक्ति । वहां जन्म और मौत दोनों नहीं। वह अमृत है। वह अमरत्व की साधना का साध्य है। मनुष्य किसी साध्य की पूर्ति के लिए जन्म नहीं लेता। जन्म लेना संसार की अनिवार्यता है । जन्म लेने वाले में योग्यता होती है, संस्कारों का संचय होता है। इसलिए वह अपनी योग्यता के अनुकल अपना साध्य चुन लेता है। जिसका जैसा विवेक, उसका वैसा ही साध्य और वैसी ही साधना- यह एक तथ्य है । इसका अपवाद नहीं होता। भगवान् महावीर भी इसके अपवाद नहीं थे। जन्म और परिवार
दुःषम-सुषमा पूरा होने में ७४ वर्ष, ११ महिने, साढ़े सात दिन बाकी थे । ग्रीष्म ऋतु थी। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मध्यरात्रि की बेला थी। उस समय भगवान महावीर का जन्म हुआ। यह ईस्वी पूर्व ५६६ की बात है। विदेह में कुण्डपुर नामक एक नगर था। उसके दो भाग थे । उत्तर भाग का नाम क्षत्रिय कुण्डग्राम और दक्षिण भाग का नाम ब्राह्मण कुडग्राम था। भगवान का जन्म दक्षिण कुण्डग्राम में हुआ था।
भगवान की माता त्रिशला क्षत्रियाणी और पिता सिद्धार्थ थे । वे भगवान पार्श्व की परंपरा के श्रमणोपासक थे। त्रिशला वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन थी। सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डग्राम के अधिपति थे।
भगवान के बड़े भाई का नाम नन्दिवर्धन था । उनका विवाह चेटक की पुत्री ज्येष्ठा के साथ हुआ था। भगवान के काका का नाम सुपार्श्व और बड़ी बहन का नाम सुदर्शना था। नाम और गौत्र
भगवान जब त्रिशला के गर्भ में आये, तब से सम्पदाएं बढ़ीं,
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