Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ ७६ जैन परम्परा का इतिहास 1 थे । आर्यरक्षित के शिष्य दुर्बलिका पुष्यमित्र ने नौ पूर्वो का अध्ययन किया किन्तु अनभ्यास के कारण वे नवें पूर्व को भूल गए । विस्मृति का यह क्रम आगे बढ़ता गया । आगम- संकलन का दूसरा प्रयत्न वीर निर्वाण ८२७ और ८४० के बीच हुआ । आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम लिखे गए। यह कार्य मथुरा में हुआ, इसलिए इसे माथुरी - वाचना कहा जाता है । इसी समय वल्लभी में आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में आगम संकलित हुए। उसे वल्लभी वाचना या नागार्जुनीय-वाचना कहा जाता है । माथुरी वाचना के अनुयायियों के अनुसार वीर- निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् तथा वल्लभी-वाचना के अनुयायियों के अनुसार वीर - निर्वाण के ९९३ वर्ष पश्चात् देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में श्रमण-संघ मिला । द्वादशवर्षीय दुर्भिक्ष के कारण बहुत सारे बहुश्रुत मुनि काल-कवलित हो चुके थे । अन्य मुनियों की संख्या भी कम हो गई थी । श्रुत की अवस्था चिन्तनीय थी । दुर्भिक्ष-जनित कठिनाइयों के कारण प्रासुक भिक्षाजीवी साधुओं की स्थिति बड़ी विचारणीय थी । क्रमशः श्रुत की विस्मृति हो रही थी । देवर्द्धिगणी ने अवशिष्ट बहुश्रुत मुनियों तथा श्रमण-संघ को एकत्रित किया | उन्हें जो श्रुतकंठस्थ था, वह उनसे सुना और लिपिबद्ध कर लिया । आगमों के आलापक न्यूनाधिक और छिन्नभिन्न मिले । उन्होंने उन सबका अपनी मति से संकलन और संपादन कर पुस्तकारूढ़ कर लिया। इसके पश्चात् फिर कोई सर्वमान्य वाचना नहीं हुई । वीर - निर्वाण की दसवीं शताब्दी के बाद पूर्वज्ञान की परम्परा विच्छिन्न हो गई । आगम-विच्छेद का क्रम भद्रबाहु का स्वर्गवास वीर- निर्वाण के १७० वर्ष पश्चात् हुआ । अर्थ की दृष्टि से अन्तिम चार पूर्वों का विच्छेद इसी समय हुआ । दिगम्बर-परम्परा के अनुसार यह वीर - निर्वाण के १६२ वर्ष पश्चात् हुआ । शाब्दी - दृष्टि से अन्तिम चार पूर्व स्थूलभद्र की मृत्यु के समय वीर- निर्वाण के २१६ वर्ष पश्चात् विच्छिन्न हुए । इनके बाद पूर्वी की परम्परा आर्यवज्र तक चली। उनका स्वर्गवास वीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158