Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 123
________________ ११८ जैन परम्परा का इतिहास नहीं पायेगा । शिल्पियों की बात सुनकर धरणाशाह ने विपुल मात्रा में 'सर्वधातु' एकत्रित कर उन्हें विस्मित कर दिया । धरणाशाह यह मानता था कि व्यर्थ एक पैसे का भी खर्च न हो और आवश्यक खर्च में तनिक भी कमी न हो । ६. राजगृह ( राजगिरी ) बिहारशरीफ से दक्षिण की ओर १३-१४ मील की दूरी पर स्थित राजगृह प्राचीन राजगिरि है । इसे गिरिव्रज भी कहा जाता है, क्योंकि यह पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ है । इन पांच पहाड़ियों के नाम ये हैं- विपुल, रत्न, उदय, स्वर्ण और वैभार । इनमें विपुल और वैभार पर्वत का बहुत महत्त्व है । अनेक मुनियों ने विपुलाचल पर तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया था। आज भी वहां अनेक गुफाएं हैं । यह पांच पहाड़ियों में सबसे ऊंची पहाड़ी है । वैभार पर्वत के नीचे गरम पानी का एक कुंड है। इसक वर्णन जैन आगम भगवती में भी आया है । आज भी वहां गरम पानी का स्रोत विद्यमान है । वह चर्मरोग निवारण का उपाय बताया जाता है। हजारों लोग वहां नहाते हैं । भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध ने राजगृह में अनेक चतुर्मास बिताए थे । महावीर प्रायः वहां के गुणशील चैत्य में ठहरते थे । वर्तमान में नबादा स्टेशन से लगभग तीन मील की दूरी पर स्थित 'गुणावा' को प्राचीन गुणशील माना जाता है । ७. ऋषभदेवजी राजस्थान के दक्षिणी अंचल में धुलेव नाम का कस्बा है । यह उदयपुर से ६४ किलोमीटर दूर उपत्यकाओं से घिरा हुआ है । यहां 'कोयल' नाम की नदी बहती है । यहीं ऋषभदेव का विशाल मन्दिर है । यह एक किलोमीटर के घेरे में स्थित पक्के पाषाण का मन्दिर है। माना जाता है कि पहले यहां ईंटों का बना हुआ मन्दिर था । वह टूट गया । फिर १४ वीं १५ वीं शताब्दी में यह पाषाणमय मंदिर बना । इस मन्दिर के गर्भगृह में भगवान् ऋषभदेव की पद्मासन में स्थित श्यामवर्णीय भव्य प्रतिमा है । इसकी ऊंचाई साढ़े तीन फुट को है । इस मूर्ति पर केसर अधिक चढ़ाई जाती है इसलिए इसे 'केसरियाजी' या 'केसरियानाथजी' भी कहते हैं । यह प्रतिमा बहुत ही चामत्कारिक है । इसलिए जैन, अजैन, भील तथा अन्य जाति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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