Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 133
________________ १२८ : ह्रास के मुख्य हेतु ये हैं १. आंतरिक पवित्रता और शक्ति की कमी, बाह्य कर्मकांडों की प्रचुरता । २. व्यक्तिवादी मनोवृत्ति - दूसरों की हानि से मुझे क्या ? मैं दूसरों के लिए क्यों कर्म बांधू ? इस प्रकार के ऐकांतिक निवृत्तिवादी चिंतन ने परस्परता के बंधन में शिथिलता ला दी । दक्षिण भारत में जैन-धर्म के ह्रास के मुख्य तीन कारण हैं :१. जैन जागृति करने वाले प्रभावशाली आचार्यों के कार्यकाल में बहुत बड़ा व्यवधान । राजनीति और धर्मनीति को २. ऐसे नेतृत्व का अभाव जो साथ-साथ लेकर चल सके । ३. अन्य धर्मों के बढ़ते हुए प्रभाव की उपेक्षा और अपने आपको एकांततः आध्यात्मिक बनाए रखने की प्रवृत्ति । दक्षिण के मुख्य दो प्रांतों में ह्रास के अन्यान्य कारण भी रहे हैं : १. तमिलनाडु में ह्रास के कारण जैन परम्परा का इतिहास १. शैव नायनार और वैष्णव अल्वारों का उदय । २. उनके द्वारा जातिवाद का बहिष्कार कर अपने धर्म-संघ में नीची जाति वालों का प्रवेश । ३. राजधर्म को प्रभावित कर राजाओं को अपने मत के प्रति आकृष्ट करना । ४. जैन स्तुतियों का अनुकरण कर शैव स्तुतियों का निर्माण करना । २. कर्नाटक में ह्रास के कारण १. राष्ट्रकूट और गंगवंशीय राजाओं का अंत | २. वीर शैवमत के उदयकाल में जैन आचार्यों की उपेक्षा और उनके प्रभाव को रोक पाने की अक्षमता । ३. बसवेश्वर द्वारा प्ररूपित 'लिंगायत' धर्म के बढ़ते चरण को रोक न पाना । ४. अनेक राजाओं का शैव मत में दीक्षित हो जाना । विकास और ह्रास कालचक्र के अनिवार्य नियम हैं । इस विषय में कोई भी वस्तु केवल विकास या ह्रास की रेखा पर अवस्थित नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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