Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 157
________________ १५२ जैन परम्परा का इतिहास शास्त्रज्ञ लोग धर्मवाद के स्थान पर विवाद को महत्त्व दे रहे थे। उनको लक्ष्य कर कहा गया--- 'शमार्थ सर्वशास्त्राणि, विहितानि मनीषिभिः। स एव सर्वशास्त्रज्ञः, यस्य शान्तं सदा मनः॥' 'मनीषियों ने शास्त्रों का निर्माण शान्ति के लिए किया। सब शास्त्रों को जानने वाला वही है जिसका मन शान्त है।' धर्म के नाम पर अशान्ति को उभारने वाला शास्त्रज्ञ नहीं हो सकता। जो स्वयं अशान्त है, वह भी शास्त्रज्ञ नहीं हो सकता। शास्त्रीय आग्रह करने वाले चिन्तन के विकास में विश्वास नहीं करते । किन्तु वास्तविकता यह है कि विचार का बीज उर्वर मस्तिष्क में विकसित होता रहता है । मैंने विचार-बीज के विकास का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है । व्यापक सन्दर्भ में इसके शतशत पल्लवन देखे जा सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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