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जैन परम्परा का इतिहास शास्त्रज्ञ लोग धर्मवाद के स्थान पर विवाद को महत्त्व दे रहे थे। उनको लक्ष्य कर कहा गया---
'शमार्थ सर्वशास्त्राणि, विहितानि मनीषिभिः।
स एव सर्वशास्त्रज्ञः, यस्य शान्तं सदा मनः॥'
'मनीषियों ने शास्त्रों का निर्माण शान्ति के लिए किया। सब शास्त्रों को जानने वाला वही है जिसका मन शान्त है।'
धर्म के नाम पर अशान्ति को उभारने वाला शास्त्रज्ञ नहीं हो सकता। जो स्वयं अशान्त है, वह भी शास्त्रज्ञ नहीं हो सकता।
शास्त्रीय आग्रह करने वाले चिन्तन के विकास में विश्वास नहीं करते । किन्तु वास्तविकता यह है कि विचार का बीज उर्वर मस्तिष्क में विकसित होता रहता है । मैंने विचार-बीज के विकास का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है । व्यापक सन्दर्भ में इसके शतशत पल्लवन देखे जा सकते हैं।
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