Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 121
________________ जैन परम्परा का इतिहास इसकी पहचान वर्तमान पारसनाथ हिल से की जाती है। यह पहाड़ी ईसरी स्टेशन से दो मील दूर है। यहां बीस तीर्थंकर संलेखनापूर्वक समाधि-मरण कर निर्वाण को प्राप्त हुए थे। इसे समाधिगिरि, समिदगिरि भी कहा जाता है। ३. शत्रुजय सौराष्ट्र में पालीताना स्टेशन से दो मील दूरी पर एक पर्वतशृंखला है। वह शत्रुजय के नाम से प्रसिद्ध है। इस पहाड़ी पर भगवान् ऋषभ का भव्य मन्दिर है। जैन तीर्थों में यह आदि तीर्थ माना जाता है। इसका दूसरा नाम पुण्डरीक है। प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के दिन यहां 'बरसी तप' का पारणा करने के लिए हजारों तपस्वी उपासक-उपासिकाएं और अन्य हजारों यात्री आते हैं। पहाड़ पर चढ़ने के लिए भव्य सोपान-मार्ग है। नगर बड़ीबड़ी धर्मशालाओं से भरा पड़ा है। यहां सैंकड़ों जैन साधु-साध्वियां हैं । महाराज कुमारपाल ने लाखों रुपये खर्च कर यहां के मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। यहां से अनेक मुनि निर्वाण को प्राप्त हुए हैं । थावच्चापुत्त का यहीं निर्वाण हुआ था। ४. श्रवणबेलगोला जैनों का यह प्रसिद्ध तीर्थ कर्णाटक प्रान्त के हासन जिले में है। यह चन्द्रगिरि और विध्यगिरि, इन दो पर्वतों की तलहटी में एक सरोवर पर स्थित है । यह मैसूर नगर से ६२ मील की दूरी पर है। इसे गोम्मट तीर्थ कहा जाता है। यहां गोमटेश्वर बाहुबली की ५७ फुट [पांच सौ धनुष्य] ऊंची मूर्ति है। इसकी स्थापना राजमल्ल नरेश के प्रधानमंत्री तथा सेनापति चामुण्डराय ने कराई थी। विद्वानों ने स्थापना की तिथि २३ मार्ग सन् १०२८ निश्चित की है। यह नयनाभिराभ मूर्ति एक ही पत्थर में उत्कीर्ण है। यह विश्व का आठवां आश्चर्य माना जा सकता है। बारह वर्षों में एक बार इसका मस्तकाभिषेक होता है। चामुण्डराय का घरेलू नाम 'गोम्मट' था। सम्भव है इसलिए उनके द्वारा निर्मित और स्थापित मूर्ति को भी 'गोम्मटेश्वर' कहा गया । सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र ने चामुण्डराय का उल्लेख 'गोम्मटराय' के नाम से किया है और पंचसंग्रह ग्रन्थ का नाम 'गोम्मटसार' रखा। श्रवणबेलगोल में लगभग ५०० शिलालेख हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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