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जैन साहित्य
सूर्य प्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति
कल्पका कल्पावतंसिका
पुष्पिका
पुष्पचूलिका वृष्णिदशा
भगवती ज्ञाताधर्मकथा
उपासकदशा
अन्तकृतदशा
अनुत्तरोपपातिकदशा
प्रश्नव्याकरण
विपाक
दृष्टिवाद
दशवेकालिक और उत्तराध्ययन- ये दो मूल सूत्र माने जाते हैं । नन्दी और अनुयोगद्वार - ये दो चूलिका सूत्र हैं । व्यवहार, बृहत्कल्प, निशीथ और दशाश्रुतस्कन्ध-- ये चार छेद सूत्र हैं ।
इस प्रकार अंग बाह्य श्रुत की समय-समय पर विभिन्न रूपों योजना हुई है ।
आगमों का वर्तमान संस्करण देवद्धिगणी का है । अंगों के कर्ता गणधर हैं । अंग बाह्य श्रुत के कर्ता स्थविर हैं । उन सबका संकलन और सम्पादन करने वाले देवद्धिगणी हैं । इसलिए वे आगमों के वर्तमान रूप के कर्त्ता भी माने जाते हैं । आगम का व्याख्यात्मक साहित्य
आगम के व्याख्यात्मक साहित्य का प्रारम्भ नियुक्ति से होता है और वह 'स्तबक' और 'जोड़ों' तक चलता है । निर्युक्तियां और नियुक्तिकार
द्वितीय भद्रबाहु ने दस नियुक्तियां लिखीं :
१. आवश्यक - नियुक्ति २. दशवेकालिक - निर्मुक्ति ३. उत्तराध्ययन-निर्युक्ति ४. आचारांग - नियुक्ति ५. सूत्रकृतांग-निर्युक्ति
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६. दशाश्रुतस्कन्ध-निर्युक्ति ७. बृहत्कल्प निर्यक्ति ८. व्यवहार-निर्युक्ति C. सूर्यप्रज्ञप्ति-निर्युक्ति १०. ऋषिभाषित-निर्युक्ति इनका रचनाकाल वीर - निर्वाण की पांचवीं छठी शताब्दी है । बृहत्कल्प की नियुक्ति भाष्य - मिश्रित अवस्था में मिलती है । व्यवहार - नियुक्ति भी भाष्य में मिली हुई है । सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित - ये दोनों नियुक्तियां अनुपलब्ध हैं । कुछ निर्युक्तियां मूल निर्युक्तियों की पूरक हैं, जैसे :
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