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भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती परम्परा
५६ मास का अनशन कर वीर निर्वाण २० (वि० पूर्व ४४०) में निर्वाण को प्राप्त हुए। आर्य जम्बकुमार
ये राजगृह-निवासी सेठ ऋषभदत्त के पुत्र थे। इनकी माता का नाम धारिणी था। इनका जन्म विक्रम पूर्व ४८६ में हुआ था। इनका लालन-पालन अपार वैभव के बीच हुआ । जब आर्य जम्बूकुमार सोलह वर्ष के हुए तब आठ रूपवती कन्याओं के साथ इनका विवाह-संस्कार संपन्न हुआ। दहेज में इन्हें निन्यानवे करोड़ की संपत्ति प्राप्त हुई। उसी दिन प्रभव नाम का प्रसिद्ध चोर अपने पांच सौ साथियों के साथ चोरी करने वहीं आया । जम्बूकुमार उस समय अपनी रूपसी पत्नियों के साथ वैराग्यमय वार्तालाप कर रहे थे। चोर प्रति-बुद्ध हुआ। उसने अपने साथियों को प्रतिबुद्ध किया। इस प्रकार आर्य जम्बू विक्रम पूर्व ४६६ में ५२७ व्यक्तियों के साथ [अपने माता-पिता, आठों पत्नियों तथा उनके माता-पिता, पांच सौ चोर और चोरपति प्रभव तथा स्वयं] सुधर्मा के पास दीक्षित हो गये। उस समय उनकी आय सोलह वर्ष की थी। अठाईस वर्ष की आयू में ये आचार्य बने और छत्तीस वर्ष की आयु में इन्हें केवलज्ञान की उपलब्धि हई। ये चरम शरीरी थे। इनका पूरा आयूष्य ८० वर्ष का था। चौसठ वर्ष के श्रमण-पर्याय में ये चवालीस वर्ष तक युगप्रधान आचार्य के रूप में रहे। ये इस युग के अन्तिम केवली थे। इनका निर्वाण विक्रम पूर्व ४०६ में हुआ।
आचार्य जम्बू के साथ-साथ केवलज्ञान की परंपरा विच्छिन्न हो गई। यहां से श्रतकेवली- चतुर्दशपूर्वी की परंपरा चली। छह आचार्य श्रतकेवली हुए-~-प्रभव, शय्यंम्भव, यशोभद्र, संभूतविजय, भद्रबाहु और स्थलभद्र ।
स्थूलभद्र के पश्चात् चार पूर्व नष्ट हो गए। वहां से दसपूर्वी की परम्परा चली। दस आचार्य दसपूर्वी हुए :-१. महागिरि २. सुहस्ती, ३. गुणसुन्दर, ४. कालकाचार्य, ५. स्कन्दिलाचार्य, ६. रेवतिमित्र, ७. मंगु, ८. धर्म, ६. चंद्रगुप्त, १०. आर्यवज्र । तीन प्रधान परम्परायें
१. गणधर-वंश २. वाचक-वंश-विद्याधर-वंश,
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