Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ ३२ जैन परम्परा का इतिहास देने में धर्म- मर्यादा नहीं रहेगी, ऐसा अन्दाजा उनको था। लेकिन एक दिन उनका शिष्य आनंद एक बहन को ले आया और बुद्ध भगवान् के सामने उपस्थित किया और बुद्ध भगवान् से कहा - 'यह बहन आपके उपदेश के लिए सर्वथा पात्र है, ऐसा मैंने देख लिया है । आपका उपदेश अर्थात् संन्यास का उपदेश इसे मिलना चाहिए ।' तो बुद्ध भगवान् ने उसे दीक्षा दी और बोले - 'हे आनंद, तेरे आग्रह और प्रेम के लिए यह काम कर रहा हूं लेकिन इससे अपने संप्रदाय के लिए एक बड़ा खतरा मैंने उठा लिया है।' ऐसा वाक्य बुद्ध भगवान् कहा और वैसा परिणाम बाद में आया भी । बौद्धों के इतिहास में बुद्ध को जिस खतरे का अन्देशा था, वह पाया जाता है । यद्यपि बौद्ध धर्म का इतिहास पराक्रमशाली है। उसमें दोष होते हुए भी वह देश के लिए अभिमान रखने के लायक है । लेकिन जो डर बुद्ध को था, वह महावीर को नहीं था, यह देखकर आश्चर्य होता है । महावीर निडर दीख पड़ते हैं । इसका मेरे मन पर बहुत असर है । इसीलिए मुझे महावीर की तरफ विशेष आकर्षण है । बुद्ध की महिमा भी बहुत है । सारी दुनिया में उनकी करुणा की भावना फैल रही है, इसीलिए उनके व्यक्तित्व में किसी प्रकार की न्यूनता होगो, ऐसा मैं नहीं मानता हूं । महापुरुषों की भिन्न-भिन्न वृत्तियां होती हैं, लेकिन कहना पड़ेगा कि गौतम बुद्ध को व्यावहारिक भूमिका छू सकी और महावीर की व्यावहारिक भूमिका छू नहीं सकी । उन्होंने स्त्री-पुरुषों में तत्त्वतः भेद नहीं रखा। वे इतने दृढ़प्रतिज्ञ रहे कि मेरे मन में उनके लिए एक विशेष ही आदर है । इसी में उनकी महावीरता है । रामकृष्ण परमहंस के संप्रदाय में स्त्री सिर्फ एक ही थी और वह थी श्री शारदा देवी, जो रामकृष्ण परमहंस की पत्नी थी और नाममात्र की ही पत्नी थी। वैसे तो वह उनकी माता हो गई थी और सम्प्रदाय के सभी भाइयों के लिए वह मातृस्थान में ही थी । परन्तु उनके सिवा और किसी स्त्री को दीक्षा नहीं दी गई थी । महावीर स्वामी के बाद २५०० साल हुए, लेकिन हिम्मत नहीं हो सकती थी कि बहनों को दीक्षा दे । मैंने सुना कि चार साल पहले रामकृष्ण परमहंस मठ में स्त्रियों को दीक्षा दी जाय - ऐसा तय किया गया । स्त्री और पुरुषों का आश्रय अलग रखा जाय, यह अलग बात है । लेकिन अब तक स्त्रियों को दीक्षा ही नहीं मिलती थी, वह अब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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