Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 15
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ न रक्त के चिह्न ही थे। राजा एवं प्रजा सब समझ गये कि यह तो देव ने मेघरथ राजा की परीक्षा ली थी। (४) ईशान देवलोक का देवेन्द्र देवलोक के गान-तान में तन्मय था। इन्द्राणियाँ उसे चारों ओर से घेरे हुए थीं। अनेक इन्द्राणिया हाव-भावों के द्वारा इन्द्र को प्रसन्न कर रहीं थीं। इतने में इन्द्र खड़ा हुआ और 'नमो भगवते तुभ्यं' 'हे भगवान! आपको नमस्कार है' - यह कह कर उसने प्रणाम किया। देवाङ्गनाओं को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। गान-तान बन्द कर दिया और वे सब कहने लगी, 'नाथ! आपने किसको प्रणाम किया? _इन्द्र ने कहा, 'देवियो! मैंने महात्मा मेघरथ को नमस्कार किया। क्या उसका सत्त्व और क्या उसकी अटलता? इतनी-इतनी ऋद्दि, वैभव एवं स्त्रियाँ तो भी वह पौषध करता है और कायोत्सर्ग के द्वारा देह का दमन करता है । मैं तुम्हारे कटाक्षों एवं हावभावों में लुब्ध हूँ जबकि 'वह लोकोत्तर जीवन जी रहा है। मैं पामर उन महात्मा को नमन न करूँ तो अन्य किसको नमन करूँ? जिसको देव, देवामनाएँ एवं इन्द्र भी अपने ध्यान में से विचलित नहीं कर सकते ऐसा उसका सत्त्व है।' तत्पश्चात् देवाङ्गनाओं एवं इन्द्र के परिवार ने भी 'नमो भगवते तुभ्यं' कह कर नमस्कार किया। ANARTAMARPARTMAIWAMINIM OT RTER कर A Soumioamrammaamrani Cin - आकाश में पुष्य वृष्टि के साथ 'जय हो महाराज मेपरथ की इस तरह पुकारती एक दिव्य आकृति प्रगट हुई.

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