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पूर्व-भव श्रवण अर्थात् चन्द्रराजा का संयम
७१ ऋद्धि और अनुत्तर के सुख भी आपको काँच के टुकड़ों के समान प्रतीत होंगे। धर्म के लिए आने वाले भयंकर कष्टों को भी आप हँसते-हँसते सहन करोगे और स्वतः ही आपका उद्धार होगा और सुख-दुःख सब में आपका चित्त समान रहेगा। आपको कोई अपना शत्रु नहीं प्रतीत होगा परन्तु समस्त जीव कर्म-वश हैं यह मान कर सबके प्रति समभाव जाग्रत होगा।'
देशना पूर्ण होने पर चन्द्र राजा विचार-मग्न हुआ। वीरमती के साथ ही मेरी यह शत्रुता की परम्परा और प्रेमला, गुणावली, शिवमाला, मकर-ध्वज आदि के साथ स्नेहसम्बन्ध भी क्या विभाव-दशा ही है न? यह विभाव-दशा जीवन में एक के पश्चात् एक पुट जमाती जाती है। उसमें पूर्व भव के कर्म कारण होते हैं। इस पूर्व भव का स्वरूप ऐसे केवलज्ञानी के अतिरिक्त अन्य कौन कहेगा? अतः वह पुनः भगवान को नमस्कार करके वोला, 'प्रभु! पूर्व भव में मैंने ऐसा कौन-सा कर्म किया था कि जिसके कारण मुझे मेरी सौतेली माँ ने मुर्गा बनाया? किन कर्मों के कारण मुझे नटों के साथ भटकना पड़ा? प्रेमला पर किस कर्म के कारण विष-कन्या का आरोप लगा? और कनकध्वज कोढ़ी क्यों हुआ? यह सब अगम अगोचर हमारा वृत्तान्त आप सर्वज्ञ भगवान के अतिरिक्त अन्य कौन कह सकता है?' __भगवान ने कहा, 'राजन्! इस संसार में प्रेम एवं द्वेष, सुख एवं दुःख सब पूर्व भव के कारणों से होते हैं। तुम्हारा पूर्व भव मैं बताता हूँ वह सुनो, ताकि उनके समस्त कारण स्वतः ही तमको समझ में आ जायेंगे।'
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नतमस्तक हो कर चंद्रराजा ने प्रभु से पूछा - प्रभु! सौतेली माँ ने मुझे मुर्गा बनाया, नटों के साथ नट .
बनकर पमना पडा... पूर्व भव में मैंने कौन से क्लिष्ट कर्म किए थे? कृपा कर बतावे.