Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 120
________________ तुम्हारा धर्म अर्थात् काल-दण्ड १०९ वना कर उसकी हिंसा की थी, जिसके प्रताप से वे मोर एवं कुत्ता, नेवला और साँप, मत्स्य एवं ग्रहा, वकरी एवं यकरा, और बकरा एवं भैंसा वन कर आज मुर्गे और मुर्गी के रूप में उत्पन्न हुए हैं।' ___ यह सुनकर मुर्गे-मुर्गी की आँखों में आँसू आ गये, वे अचेत हो गये और उन्हें अपने पूर्व भवों का जाति-स्मरण-ज्ञान हुआ। ये दोनों किल-किल की आवाज करते हुए मुनिवर के चरणों में लोटने लगे। ___ कालदण्ड चौंका और बोला, 'महाराज! यह मुर्गा राजराजेश्वर यशोधर है और यह मुर्गी विश्व-वंद्य माता चन्द्रमती है। अहा! साधारण हिंसा से इनकी ऐसी दशा हुई। कहाँ वे प्रतापी मालव-नृप यशोधर और कहाँ यह मुर्गे का जन्म? भवितव्यता की क्या प्रवलता है! महाराज! आप मुर्गा नहीं है, मेरे मन से आप मेरे राजा हैं; आप मुझे आज्ञा दीजिये।' मुर्गे की ओर उन्मुख होकर वह वोला, 'मैं आपका क्या करूँ?' मुर्गे और मुर्गी ने चोंच ऊपर-नीचे करके अपने पाँव हिलाये, भिन्न भिन्न शब्द किये, परन्तु कालदण्ड उनमें संकेतों को समझ नहीं सका । अतः वह वोला, ‘महाराज! आप क्या कह रहे हैं वह समझ में नहीं आ रहा । मैं पक्षियों की भाषा नहीं जानता क्या करूँ?' __मुनिवर ने कहा, 'कालदण्ड! ये दोनों पक्षी कह रहे है कि हमें अनशन करना है। इनका आयुष्य दो घड़ी का है। तु इन्हें धर्म का पाधेय देने के लिए सचेत रह।' । ____ हम दोनों मुनि की वाणी स्वीकार कर रहे हों उस प्रकार हमने पुनः शब्द किये। वे शब्द राजा गुणधर ने सुने।। मुनिवर ने कहा 'कानदण्ड! सचेत हो जा। इन पक्षियों का अन्तिम समय निकट 15 812 . LAB H मुनिवर चाल · कालदण्ड/ सचत हा जा. इन पक्षिया का निम समय निकट आ रहा है उसकाईक नहीं सकेगा. इन्हें धर्म प्राप्त कराने में तं तनिक भी प्रमाद मत कर!

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