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सचित्र जैन कथासागर भाग- २
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क्योंकि उसकी सुन्दर, सचित्र प्रतियाँ आज भी भण्डारों में उपलब्ध हैं ।
यह चरित्र मुख्यतया तो सियाल एवं शत्रुंजय की महिमा का उद्बोधक है, परन्तु साथ ही साथ उसमें अनेक सुन्दर विषय हैं ।
यह चारित्र अत्यन्त रसमय, रसप्रद एवं धर्म-प्रेरक है रास-कर्त्ता की यह कृति कोई सामान्य कृति ( रचना) नहीं है बल्कि काव्य के समस्त लक्षणों से युक्त काव्यकृति है । उसे समक्ष रख कर संक्षेप में यह चरित्र लिखा है ।
( चन्द्रराजा का रास से)