Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 102
________________ यशोधर चरित्र - अधुरी आशा अर्थात् यशोधर राजा मुर्गा रख कर माता की प्रेरणा के अनुसार मैंने उसे सच्चा मुर्गा मानकर तलवार से उसका वध कर दिया। मुर्गा आटे का था परन्तु माता ने सच्चे मर्गे के रूप में ही देवी की प्रसादी के लिये उसे पकाया और सीरनी की तरह उसने सबको वितरित किया। माता ने उसकी सीरनी मुझे भी भोजन के रूप में परोसी, परन्तु मैंने यह नहीं ली। अतः माता ने यह कह कर कि तु समझता नहीं है और मुझे उपालम्भ देकर मेरे हाथ पकड़ कर बल पूर्वक उस कल्पित मुर्गे का माँस मेरे मुँह में डाल दिया | मेरे मुँह में उस मुर्गे की सीरनी पड़ते ही माता को अत्यन्त हर्ष हुआ। उसने मन से मान लिया कि देवी को मैंने प्रसन्न कर लिया और स्वप्न का अमंगल नष्ट हो गया, परन्तु वास्तव में तो इस पाप ने मेरे जीवन को भयंकर रूप से मलिन कर दिया और शिखर पर चढ़े हुए मुझे पतन की खाई रूपी पाताल में पछाड़ कर संसार में भटकाया। राजन्! तत्पश्चात् मैं अपने शयनागार में आया । नयानावली नेत्र फाड़े हुए मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मैंने कहा, 'प्रिये! आज शीघ्र सोजा । कल राजुकमार गुणधर कुमार का राज्याभिषेक करना है और परसों में संयम अङ्गीकार करूँगा। कल मुझे संसार का यह सव मेला समेटना है । अन्तिम सीख कल तक की है।' रानी ने मेरी यात में 'ठीक-ठीक' कहा परन्तु अधिक रुचि नहीं दिखाई । अतः मैंने सोचा कि इसे नींद आ रही होगी और मैंने वोलना बन्द कर दिया। पलंग पर चुपचाप नेत्र मूंद कर एक के पश्चात् एक कल किये जाने वाले कार्यों का और भविष्य के विचारों का चिन्तन करता AK TRITIHIM - D A - - MITHA TA ) PORN HE THIRTEERRORRBINIRE अपनी इच्छा न होते हुए भी अन्य धर्मी-माता के आग्रह से राजा ने आटे के मुर्ग की हत्या की. परिणामतः भवांतर में पशु बन कर अपने ही पुत्र के हाथों से अनेक बार बलि को प्राप्त होना पड़ा!

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