Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 112
________________ माता-पिता का वध अर्थात् पाँचवां एवं छठा भव (३८) माता-पिता का वध अर्थात् पाँचवां एवं छठा भव (१) राजन्! अब आप मेरा पाँचवा एवं छठा भव सुनो । माता ग्रहा के भव में से बकरी हुई और मैं उसके ही गर्भ से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। जन्म होने के पश्चात् कुछ ही समय में हष्ट-पुष्ट बकरा बन गया। पशुओं में विवेक तो होता नहीं। विवेक हीन युवा बकरे के रूप में मैं अपनी माता के साथ ही विषय-भोग करने लगा। मैं माता के साथ विषय भोग कर विश्राम ले रहा था इतने में समूह के अधिपति ने वाण मार कर मुझे मार डाला। कर्म-संयोग से वहाँ से मर कर मैं अपने ही वीर्य से माता की कुक्षि में पुनः बकरे के रूप में उत्पन्न हुआ । इस भव में मेरी माता वह पत्नी बनी और पुनः माता बन गई। एक वार जंगल में घूमती हुई इस वकरी पर राजा गुणधर की दृष्टि पड़ी। राजा IWAN -nA पाचवों भव: यशोधर बकरे के भव में, यशोधरा बकरी के रूप में. छठा भव : पुनः यशोघर बकरे के रुप में रोम-रोम में कृष्ठ रोग से ग्रसित नयनावलिको निरखता हुआ.

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