Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 117
________________ १०६ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ उन्हें खिलाने का अत्यन्त शौक था। अतः उसे प्रसन्न करने के लिए चाण्डाल-पुत्र अणुहल्ल हम दोनों को उसके पाप्त ले गया और उसे हमें उपहार स्वरूप दे दिया । इस प्रकार हम दोनों चाण्डाल पुत्र के पास से कालदण्ड कोतवाल के वहाँ पहुंचे। ___ कोतवाल के पास रहते हुए हम दोनों को एक बार गुणधर राजा ने देखा । पूर्वभव के स्नेह के कारण हमें देखते ही उसको हमारे प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ और वह बोला, 'क्या सुन्दर मुर्गा-मुर्गी तु लाया है?' तत्पश्चात् राजा ने कालदण्ड को कहा, 'कालदण्ड! अव हमारी सवारी जहाँ प्रस्थान करे वहाँ इन दोनों पक्षियों को साथ लेकर तू हमारे साथ आयेगा। मुझे ये दोनों पक्षी अत्यन्त प्रिय हैं।' __तत्पश्चात् गुणधर राजा की सवारी जहाँ प्रयाण करती वहाँ हम भी प्रयाण करते और उसके खिलौनों के रूप में हम उसे अपने मधुर-मधुर शब्द सुना कर उसे प्रफुल्लित करके हम अपना समय व्यतीत करने लगे। (२) राजन्! जव एक वार वसन्त ऋतु का आगमन हुआ तव पुष्प-वाटिका में समग्र वनराजी मुस्करा कर सवको मानो निमन्त्रण सा दे रही थी। उस समय राजा गुणधर अपने परिवार के साथ बसन्त ऋतु का आनन्द लेने के लिए उद्यान में आया। उनके साथ रानी जयावली एवं उसकी दासियाँ भी थीं। राजा उद्यान के मध्य निर्मित महल के बरामदे में बैठा । उस समय सेवकों ने आकर अनेक प्रकार के पुष्पों, पत्तों, और फलों के उनके समक्ष ढेर लगा दिये। राजा को उन सयकी अपेक्षा रानी जयावली का चेहरा अधिक मोहक प्रतीत हुआ । अतः उसने सेवकों को विदा कर दिया और वह रानी जयावली के साथ प्रमोद में तन्मय हो गया। उस अवसर पर हमारा रक्षक कालदण्ड कोतवाल हमें पिंजरे में लेकर उद्यान के महल में आया, परन्तु उसने समझा कि राजा रानी के साथ आनन्द में लीन है, अतः वह वहाँ से लौट गया और वसन्त ऋतु का अपूर्व सौन्दर्य निहारता हुआ एक शाल वृक्ष के समीप पहुंचा, जहाँ वृक्ष के नीचे शशिप्रभ नाम के आचार्य स्थिर दृष्टि से कायोत्सर्ग में लीन थे । अन्यत्र भटकने की अपेक्षा कोतवाल की इच्छा उनके पास बैठ कर कुछ धर्म-चर्चा करने की हुई। अतः उसने पिंजरा नीचे रख दिया और मुनि को प्रणाम करके वन्दन किया। मुनि ने तुरन्त कायोत्सर्ग पूर्ण करके उसे धर्म-आशीर्वाद दिया तव कालदण्ड ने कहा, 'महाराज! हमने ऐसे जैन साधु पहले किसी समय देखे हैं। उनकी प्रतिष्ठा एवं आचार उत्तम होते हैं, ऐसा सुना है, परन्तु उनका धर्म क्या है, यह हमें पता नहीं है। अतः आप अपने धर्म के विषय में हमें बतायें।'

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