Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 92
________________ ८१ सीख की रीति अर्थात् शान्तु मंत्री का वृत्तान्त के साथ खड़े रह कर बातें करें उसमें अच्छा नहीं लगता' - ऐसे वचनों के द्वारा सीख भी नहीं दी। ___ मंत्री भी शान्तुवसही में जिनेश्वर भगवान को वन्दन करके अपने निवास पर लौट आये। मंत्री ने यह वात न तो पुजारी को कही और न गाँव के लोगों को कही, परन्तु उस जैन साधु को लज्जा का पार न रहा। उसे तो ऐसा ही महसूस हुआ कि 'पृथ्वी मार्ग दे तो मैं पाताल में समा जाऊँ ।' मैं किस मुँह कल शान्तु मंत्री से वन्दन कराऊँगा और कदाचित् वे इस समय मेरे पास वेश्या खड़ी थी अतः सज्जन मनुष्य की तरह कुछ नहीं बोले परन्तु पूछेगे कि 'महाराज! यह क्या कर रहे हो?' तो मैं क्या उत्तर दूँगा? साधु पूर्ण पश्चाताप करने लगा। उसने चैत्यवास का त्याग कर दिया, पुनः दीक्षित हुआ और इस पाप की आलोचना के लिए उसने शत्रुजय गिरिराज का शरण भी ग्रहण किया। ग्रीष्म ऋतु का दिन था। मध्याह्न हो गया था । गिरिराज का मार्ग सूर्य की प्रखर किरणों से तवे के समान तप रहा था। उस समय एक मुनि धीरे धीरे देख-देख कर पाँव रख कर उतरते-उतरते गिरिराज की तलहटी पर आये। इन मुनि की देह केवल अस्थिपिंजर तुल्य थी। उन्हें देखने वाला व्यक्ति उनकी हड्डी गिन सकता था, फिर भी उनका मुखारविन्द अत्यन्त ही तेजस्वी था । मुनि की आयु अभी वृद्धत्व को नहीं पहुंची थी, परन्तु तप-कष्ट से व्यतीत किये वर्षों के कारण उनकी वास्तविक आयु निर्धारित नहीं की जा सकती थी। __ठीक उसी समय शान्तु मंत्री गिरिराज से नीचे उतर कर तलहटी पर आये । नित्य क्रमानुसार उन्होंने अपने उत्तरीय को ऊपर-नीचे करके पूँज कर उन तपस्वी मुनिराज को बन्दन किया और सुख-शाता पूछी। उन्होंने कहा, 'भगवन! आपको मैंने कहीं देखा हो ऐसा प्रतीत होता है, परन्तु कव देखा यह ध्यान नहीं है | मेरी वृद्धावस्था परिचित को भी भूल जाये ऐसी हो गई है। भगवन! आपका नाम क्या है और आपके गुरुदेव का नाम क्या है?' मुनि ने कहा, 'मंत्रीवर! मेरे गुरु शान्त मंत्री आप हैं।' ___ मंत्रीवर ने कहा, 'महाराज! मैं पामर तो आपका शिष्य बनने के योग्य भी नहीं साधु बोले, 'वास्तव में आप मेरे गुरु हैं । साधु हो अथवा गृहस्थ, जो जिसको धर्मदान देकर शुद्ध धर्म में लगाये वह उसका धर्म-गुरु है। अतः उसी प्रकार आपने मुझे धर्म-दान दिया है अतः आप मेरे धर्म-गुरु हैं। बारह वर्ष पूर्व की बात स्मरण करो। आप रयवाडी से फिर कर हाथी से नीचे उतर कर जिनालय में प्रविष्ट हो रहे थे उस

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